न भूतपूर्वं न कदापि वार्ता हेम्नः कुरङ्गो कदापि न दृष्टः |
तथापि तृष्णा रघुनन्दनस्य विनाशकाले विपरीत बुद्धिः ||
भावार्थ - न तो ऐसा पहले कभी हुआ था और न किसी ने
सुना था , और सोने का मृग न कभी किसी ने देखा था , परन्तु
श्री रामचन्द्र जी ने लालच वश इसे सत्य मान लिया था |
सचमुच जब विनाशकाल आता है तो मनुष्य की बुद्धि भृष्ट
हो जाती है |
{रामायण महाकाव्य के एक प्रसंग को, (जिस में मायावी मारीच
राक्षस द्वारा छलपूर्वक एक सुनहरे मृग का रूप धर कर श्री राम
की पत्नी सीता को लुभा कर श्री राम को उस का वध करने के
लिये बाध्य किया और जिसके फलस्वरूप सीता का हरण रावण
द्वारा किया गया ) एक दृष्टान्त के रूप में प्रस्तुत कर इस सुभाषित
द्वारा यह् तथ्य प्रतिपादित किया गया है कि लालच के वश में
मनुष्य की सही निर्णय करने की क्षमता समाप्त हो जाती है | }
Na bhootapoorvam na kadaapi vaartaa
Hemnh kurango kadaapi na drushth
Tathaapi trushnaa raghunandanasya.
Vinaashkale vipareeta buddhih.
Na = not. Bhootapoorvam = happened earlier.
Na adaapi = never. Vaartaaa = news. Hemnah = Gold.
Kurango = a deer. Kadaapi Na = never. Drushtah = seen.
Tathaapi = even then Trushnaa = greed, thirst, desire.
Raghunandasya = Lord Ram's . Vinaashkaale = vinaash +
kaale. Vinaash = ruin, destruction. KJaale = at the time of.
Vipareet = contrary, perverse. Buddhih = perception, reason.
i.e. It had never happened in the past, nor had any one ever
heard or seen that a golden deer ever existed, Even then ,greed
forced Lord Ram to believe this as true. It is truly said that at
the time of destruction or an adversity the intellect of persons
becomes perverse.
{Using as an illustration the episode of abduction of Sita in the
epic Ramayana, (in which the demon Maaricha, allured Sita, by
transforming himself as a golden deer and Lord Ram was forced
by Sita to kill the deer for its hide, which ultimately resulted in
abduction of Sita by Ravana ) the author has emphasised the
fact that at the time of imminent destruction or ruin the intellect
of a person becomes perverse.}
तथापि तृष्णा रघुनन्दनस्य विनाशकाले विपरीत बुद्धिः ||
भावार्थ - न तो ऐसा पहले कभी हुआ था और न किसी ने
सुना था , और सोने का मृग न कभी किसी ने देखा था , परन्तु
श्री रामचन्द्र जी ने लालच वश इसे सत्य मान लिया था |
सचमुच जब विनाशकाल आता है तो मनुष्य की बुद्धि भृष्ट
हो जाती है |
{रामायण महाकाव्य के एक प्रसंग को, (जिस में मायावी मारीच
राक्षस द्वारा छलपूर्वक एक सुनहरे मृग का रूप धर कर श्री राम
की पत्नी सीता को लुभा कर श्री राम को उस का वध करने के
लिये बाध्य किया और जिसके फलस्वरूप सीता का हरण रावण
द्वारा किया गया ) एक दृष्टान्त के रूप में प्रस्तुत कर इस सुभाषित
द्वारा यह् तथ्य प्रतिपादित किया गया है कि लालच के वश में
मनुष्य की सही निर्णय करने की क्षमता समाप्त हो जाती है | }
Na bhootapoorvam na kadaapi vaartaa
Hemnh kurango kadaapi na drushth
Tathaapi trushnaa raghunandanasya.
Vinaashkale vipareeta buddhih.
Na = not. Bhootapoorvam = happened earlier.
Na adaapi = never. Vaartaaa = news. Hemnah = Gold.
Kurango = a deer. Kadaapi Na = never. Drushtah = seen.
Tathaapi = even then Trushnaa = greed, thirst, desire.
Raghunandasya = Lord Ram's . Vinaashkaale = vinaash +
kaale. Vinaash = ruin, destruction. KJaale = at the time of.
Vipareet = contrary, perverse. Buddhih = perception, reason.
i.e. It had never happened in the past, nor had any one ever
heard or seen that a golden deer ever existed, Even then ,greed
forced Lord Ram to believe this as true. It is truly said that at
the time of destruction or an adversity the intellect of persons
becomes perverse.
{Using as an illustration the episode of abduction of Sita in the
epic Ramayana, (in which the demon Maaricha, allured Sita, by
transforming himself as a golden deer and Lord Ram was forced
by Sita to kill the deer for its hide, which ultimately resulted in
abduction of Sita by Ravana ) the author has emphasised the
fact that at the time of imminent destruction or ruin the intellect
of a person becomes perverse.}
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