तत् कर्म यत् न बन्धाय सा विद्या या विमुक्तये |
आयासाय अपरं कर्म विद्या अन्या शिल्पनैपुणम् ||
संस्कृत सुभाषितानि (विष्णु पुराण )
भावार्थ - वही कर्म अच्छे कर्म हैं जिन से मनुष्य इस संसार के
बन्धनों में लिप्त नहीं होता है तथा वही विद्या सच्ची विद्या है
जिस से मनुष्य जन्म -मृत्यु के बन्धनों से मुक्त हो कर मोक्ष
प्राप्त कर सके | इसके अतिरिक्त विद्या के अन्य प्रकार विभिन्न
शिल्प कर्मों में निपुणता है जिनके करने मे अधिकतर चिन्ता और
कष्ट ही प्राप्त होते हैं |
( सनातन धर्म के अनुसार मानव जीवन का मुख्य उद्देश्य मोक्ष की
प्राप्ति है तथा इस हेतु भगवद्गीता में 'निष्काम कर्मयोग ' का
अनुपालन करने को कहा गया है जिस के अनुसार बिना किसी
कामना के सत्कर्म करने से ही 'मोक्ष प्राप्त होता है | इस सुभाषित
में इसी भावना को व्यक्त किया गया है | )
Tat karma yat na babdhaaya saa vidyaa yaa vimuktaye.
Aayaasaaya aparam karma vidyaa anyaa shilpanaipunam.
Tat = that Karma = deeds, work. Yat = that Na = not.
Bandhaaya = causes to bound or capture. Saa = that.
Vidyaa = knowledge. Yaa = that. Vimuktaye = sets
a person free Ayaasaaya = give pain and worries.
Aparam = other. Anyaa = inexhaustible, another.
Shilpanaipunam = shilpa + naipunam. Shilpa =handicrafts.
Naipounam = expertise in.
i.e. Only those deeds are the real deeds , which do not bound
people into day-to-day worldly affairs and that knowledge is
the real knowledge which helps them in attaining 'Moksha'
( release from the cycle or birth and death). Besides this there
are other forms of knowledge based on various handicrafts, but
while practising them one often gets pain and sorrow.
(According to Sanatan Dharm ( religion of Hindus) the main aim
should be to attain 'Moksha; i.e. release from the cycle of birth and
death, and all human activities should be based on achieving it.
In Bhagvad Geetaa to achieve this 'Nishkaam Karma Yoga' i.e.
doing all activities without any attachment, has been prescribed.
This Subhashita deals with this aspect of Life.)
आयासाय अपरं कर्म विद्या अन्या शिल्पनैपुणम् ||
संस्कृत सुभाषितानि (विष्णु पुराण )
भावार्थ - वही कर्म अच्छे कर्म हैं जिन से मनुष्य इस संसार के
बन्धनों में लिप्त नहीं होता है तथा वही विद्या सच्ची विद्या है
जिस से मनुष्य जन्म -मृत्यु के बन्धनों से मुक्त हो कर मोक्ष
प्राप्त कर सके | इसके अतिरिक्त विद्या के अन्य प्रकार विभिन्न
शिल्प कर्मों में निपुणता है जिनके करने मे अधिकतर चिन्ता और
कष्ट ही प्राप्त होते हैं |
( सनातन धर्म के अनुसार मानव जीवन का मुख्य उद्देश्य मोक्ष की
प्राप्ति है तथा इस हेतु भगवद्गीता में 'निष्काम कर्मयोग ' का
अनुपालन करने को कहा गया है जिस के अनुसार बिना किसी
कामना के सत्कर्म करने से ही 'मोक्ष प्राप्त होता है | इस सुभाषित
में इसी भावना को व्यक्त किया गया है | )
Tat karma yat na babdhaaya saa vidyaa yaa vimuktaye.
Aayaasaaya aparam karma vidyaa anyaa shilpanaipunam.
Tat = that Karma = deeds, work. Yat = that Na = not.
Bandhaaya = causes to bound or capture. Saa = that.
Vidyaa = knowledge. Yaa = that. Vimuktaye = sets
a person free Ayaasaaya = give pain and worries.
Aparam = other. Anyaa = inexhaustible, another.
Shilpanaipunam = shilpa + naipunam. Shilpa =handicrafts.
Naipounam = expertise in.
i.e. Only those deeds are the real deeds , which do not bound
people into day-to-day worldly affairs and that knowledge is
the real knowledge which helps them in attaining 'Moksha'
( release from the cycle or birth and death). Besides this there
are other forms of knowledge based on various handicrafts, but
while practising them one often gets pain and sorrow.
(According to Sanatan Dharm ( religion of Hindus) the main aim
should be to attain 'Moksha; i.e. release from the cycle of birth and
death, and all human activities should be based on achieving it.
In Bhagvad Geetaa to achieve this 'Nishkaam Karma Yoga' i.e.
doing all activities without any attachment, has been prescribed.
This Subhashita deals with this aspect of Life.)
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