ईर्ष्या कलहमूलं स्यात्क्षमा मूलं हि सम्पदां |
ईर्ष्यादोशाद्विप्रशापं अवाप जनमेजयः || - महासुभषितसंग्रह
भावार्थ - हे जनमेजय ! ईर्ष्या की भावना व्यक्तियों के मध्य कलह
(झगडा )होने का मुख्य कारण होती है और इसके विपरीत यदि लोगों
में क्षमा की भावना हो तो उससे उनकी धन- संपत्ति की वृद्धि होती है |
ईर्ष्या के दोष तथा ब्राह्मणों के द्वारा दिये गये शाप के कारण लोगों को
अत्यन्त कष्ट उठाना पडता है |
(महाभारत के कथानक में पाण्डवों के प्रपौत्र के रूप में जनमेजय का
वर्णन है | अपने पिता परीक्षित की तक्षक नाग द्वारा मृत्यु होने पर एक
'नागयज्ञ' का आयोजन कर सभी नागों को उस यज्ञ मे नष्ट करने का
प्रयत्न करने के लिये वह प्रसिद्ध है | उपर्युक्त श्लोक एक ऋषि के द्वारा
दिये गये उपदेश का एक अंश है | )
Ershyaa kalahamoolam syaatkshamaa mooolam hi sampadaam,
Ershyaadoshhaadviprashaaapam avaaap janamejayah,
Ershyaa = jealousy. Kalaha = quarrel. Moolam = root cause.
syaatkshamaa =syaat +kshamaa. Syaat = perhaps/ Kshama=
forgiveness. forbearence Hi = surely. Sampadaam = wealth.
Ershyaadoshaadviprashaapam = Ershyaadoshaat+ viprashaapam.
Ershyaadoshaat = due to the defect of being envious. Vipra =
a priest, a Brahmana . Shaapam = a curse. Avaap = suffer,
Janamejayah = A character in the epic Mahabharata. He was a
Kaurava King and the great grandson of Arjuna His father, King
Parikshnit was killed by a serpent called 'Takshak'. So, to take a
revenge he arranged for a ritual sacrifice of all serpents The above
shloka is part of advice given to him by a sage not to do it..
i.e. O king Janamejaya ! envy is the root cause of enmity among
people and contrary to this forgiveness and forbearance is the
root cause of prosperity. Due to the bad habit of being envious and
being cursed by a priest or a Brahmana (for misbehaving with him)
people have to undergo too much suffering.
ईर्ष्यादोशाद्विप्रशापं अवाप जनमेजयः || - महासुभषितसंग्रह
भावार्थ - हे जनमेजय ! ईर्ष्या की भावना व्यक्तियों के मध्य कलह
(झगडा )होने का मुख्य कारण होती है और इसके विपरीत यदि लोगों
में क्षमा की भावना हो तो उससे उनकी धन- संपत्ति की वृद्धि होती है |
ईर्ष्या के दोष तथा ब्राह्मणों के द्वारा दिये गये शाप के कारण लोगों को
अत्यन्त कष्ट उठाना पडता है |
(महाभारत के कथानक में पाण्डवों के प्रपौत्र के रूप में जनमेजय का
वर्णन है | अपने पिता परीक्षित की तक्षक नाग द्वारा मृत्यु होने पर एक
'नागयज्ञ' का आयोजन कर सभी नागों को उस यज्ञ मे नष्ट करने का
प्रयत्न करने के लिये वह प्रसिद्ध है | उपर्युक्त श्लोक एक ऋषि के द्वारा
दिये गये उपदेश का एक अंश है | )
Ershyaa kalahamoolam syaatkshamaa mooolam hi sampadaam,
Ershyaadoshhaadviprashaaapam avaaap janamejayah,
Ershyaa = jealousy. Kalaha = quarrel. Moolam = root cause.
syaatkshamaa =syaat +kshamaa. Syaat = perhaps/ Kshama=
forgiveness. forbearence Hi = surely. Sampadaam = wealth.
Ershyaadoshaadviprashaapam = Ershyaadoshaat+ viprashaapam.
Ershyaadoshaat = due to the defect of being envious. Vipra =
a priest, a Brahmana . Shaapam = a curse. Avaap = suffer,
Janamejayah = A character in the epic Mahabharata. He was a
Kaurava King and the great grandson of Arjuna His father, King
Parikshnit was killed by a serpent called 'Takshak'. So, to take a
revenge he arranged for a ritual sacrifice of all serpents The above
shloka is part of advice given to him by a sage not to do it..
i.e. O king Janamejaya ! envy is the root cause of enmity among
people and contrary to this forgiveness and forbearance is the
root cause of prosperity. Due to the bad habit of being envious and
being cursed by a priest or a Brahmana (for misbehaving with him)
people have to undergo too much suffering.
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