उचितं व्ययशीलस्य कृशत्वमपि शोभते |
द्वितीयाश्चन्द्रमा वन्द्यो न वन्द्यः पूर्णचन्द्रमा || - महासुभषितसंग्रह
भावार्थ - मुक्त हस्त से व्यय (दान)करने वाले व्यक्तियों का दुबले पतले
होने पर भी समाज में उसी प्रकार सुशोभित (सम्मानित) होना वैसे ही उचित
है जैसे कि शुक्लपक्ष में द्वितीया तिथि का चन्द्रमा वन्दनीय है न कि
पूर्णमासी का चन्द्रमा |
(इस सुभाषित में चन्द्रमा के आकार में वृद्धि तथा कमी को एक उपमा के रूप
में प्रयुक्त कर दुबले पतले परन्तु दानशील व्यक्तियों की तुलना शुक्लपक्ष की
द्वितीया तिथि के चन्द्रमा से कर उनकी प्रसंशा की गयी है | शुक्लपक्ष में चन्द्रमा
में प्रतिदिन एक कला की वृद्धि होती है जिस से रात्रि में उसके प्रकाश में भी वृद्धि
होती है | द्वितीया का चन्द्रमा अपनी सुन्दर छवि के लिये भी प्रसंशित होता है
तथा इस्लाम धर्मावलम्बियों द्वारा भी वह् दिन ईद के रूप मे मनाया जाता है
इसी कारण द्वितीया के चन्द्रमा को श्रेष्ठ और पूजनीय माना गया है | )
Uchitam vyayasheelasya krushatvamapi shobhate.
Dviteeyashchandramaa vandyo na vandyah poornachandramaa.
Uchitam = proper, appropriate. Vyayasheelasya = a spendthrift
person's Krushatvamapi = krushatvaam + api. Krushatvam =
emaciation. thinness. Api = even. Shobhate = beautified,
embellished. Dviteeyaashchandrama = dviteyaah + Chandrama.
Dviteeyaah = The second day of the waxing Moon. Chandrama=
the Moon. Vandyo = Venerable, adorable, No = not. Vandyah =
venerable. Poornachandrama + full Moon
i.e. It is appropriate that a lean and thin spendthrift person
(due to his charitable nature) is more adorable in the society, just like
a thin waxing Moon of the second day of the fortnight is venerated
more than the full Moon on the 15th day of the fortnight.
(The phenomenon of two fortnights of waxing and waning Moon has
been used as a Simile in this Subhashita to praise persons of charitable
nature but having a lean and thin body like the Moon's second day of
the waxing fortnight being more adorable and venerable rather than the
full Moon. Muslims also venerate the second day of the waxing moon
as their Eid festival)
द्वितीयाश्चन्द्रमा वन्द्यो न वन्द्यः पूर्णचन्द्रमा || - महासुभषितसंग्रह
भावार्थ - मुक्त हस्त से व्यय (दान)करने वाले व्यक्तियों का दुबले पतले
होने पर भी समाज में उसी प्रकार सुशोभित (सम्मानित) होना वैसे ही उचित
है जैसे कि शुक्लपक्ष में द्वितीया तिथि का चन्द्रमा वन्दनीय है न कि
पूर्णमासी का चन्द्रमा |
(इस सुभाषित में चन्द्रमा के आकार में वृद्धि तथा कमी को एक उपमा के रूप
में प्रयुक्त कर दुबले पतले परन्तु दानशील व्यक्तियों की तुलना शुक्लपक्ष की
द्वितीया तिथि के चन्द्रमा से कर उनकी प्रसंशा की गयी है | शुक्लपक्ष में चन्द्रमा
में प्रतिदिन एक कला की वृद्धि होती है जिस से रात्रि में उसके प्रकाश में भी वृद्धि
होती है | द्वितीया का चन्द्रमा अपनी सुन्दर छवि के लिये भी प्रसंशित होता है
तथा इस्लाम धर्मावलम्बियों द्वारा भी वह् दिन ईद के रूप मे मनाया जाता है
इसी कारण द्वितीया के चन्द्रमा को श्रेष्ठ और पूजनीय माना गया है | )
Uchitam vyayasheelasya krushatvamapi shobhate.
Dviteeyashchandramaa vandyo na vandyah poornachandramaa.
Uchitam = proper, appropriate. Vyayasheelasya = a spendthrift
person's Krushatvamapi = krushatvaam + api. Krushatvam =
emaciation. thinness. Api = even. Shobhate = beautified,
embellished. Dviteeyaashchandrama = dviteyaah + Chandrama.
Dviteeyaah = The second day of the waxing Moon. Chandrama=
the Moon. Vandyo = Venerable, adorable, No = not. Vandyah =
venerable. Poornachandrama + full Moon
i.e. It is appropriate that a lean and thin spendthrift person
(due to his charitable nature) is more adorable in the society, just like
a thin waxing Moon of the second day of the fortnight is venerated
more than the full Moon on the 15th day of the fortnight.
(The phenomenon of two fortnights of waxing and waning Moon has
been used as a Simile in this Subhashita to praise persons of charitable
nature but having a lean and thin body like the Moon's second day of
the waxing fortnight being more adorable and venerable rather than the
full Moon. Muslims also venerate the second day of the waxing moon
as their Eid festival)
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