उच्चासनगतो नीचः नीच एव न चोत्तमः |
प्रासादशिखरस्योSपि काकः किं गरुडायते || - महासुभषितसंग्रह
भावार्थ - उच्च पद अथवा स्थान पर नीच और दुष्ट व्यक्ति, तथा
उसी प्रकार निम्नस्तर के पदों पर श्रेष्ठ और सज्जन व्यक्ति शोभित
नहीं होते हैं | क्या कभी किसी महल या किले के शिखर पर बैठा हुआ
एक कव्वा किसी गरुड पक्षी के समान सुशोभित हो सकता है ?
(प्रायः यह देखा गया है कि यदि किसी उच्च पद पर कोई अयोग्य
और दुष्ट व्यक्ति नियुक्त हो जाता है तो वह उस पद की गरिमा को
नष्ट कर देता है और वैसा ही एक योग्य तथा विद्वान् व्यक्ति द्वारा
निम्न श्रेणी के पद पर नियुक्त हो जाने से उस व्यक्ति की गरिमा भी
नष्ट हो जाती है | इस स्थिति का वर्णन इस सुभाषित में एक कव्वे और
गरुड की उपमा द्वारा बडे प्रभावी रूप से किया गया है | )
Ucchaasanagato neechah neecha eva na chottamah,
Praasaadashikharasyopi kaakh kim garudaayate.
Ucchaasanagato - uccha + Aasan + gato. Uccha = high.
Aasan = seat, a post. Gato = gone to any state or condition.
Neeechah = mean, inferior. Eva = already, really. Na = not.
Chottamah =cha + uttamah. Ca = and. Uttamah = excellent.
Praasadashikharasyopi = praasaad +shikharo + api.
Praasad = a castle. Shikharasya. = top, pinnacle Api =even.
Kaakah = a crow. Kim = can ? Garudaayate = acquire the
grandeur and status of an Eagle.
i. e. Mean and inferior persons posted in important posts,
and likewise excellent and knowledgeable persons occupying
insignificant posts, do not beautify such posts. Can an ordinary
crow sitting over the top of a castle match the grandeur of an Eagle
perched over there ? .
( Now a days it has become a routine that mean and incompetent
persons occupy very important posts and on the contrary noble and
knowledgeable persons languish in very insignificant postings ,
which results in decline of proper administration in all walks of life.
This Subhashita highlights this phenomenon nicely by the use of a
Simile of a crow and an eagle. )
प्रासादशिखरस्योSपि काकः किं गरुडायते || - महासुभषितसंग्रह
भावार्थ - उच्च पद अथवा स्थान पर नीच और दुष्ट व्यक्ति, तथा
उसी प्रकार निम्नस्तर के पदों पर श्रेष्ठ और सज्जन व्यक्ति शोभित
नहीं होते हैं | क्या कभी किसी महल या किले के शिखर पर बैठा हुआ
एक कव्वा किसी गरुड पक्षी के समान सुशोभित हो सकता है ?
(प्रायः यह देखा गया है कि यदि किसी उच्च पद पर कोई अयोग्य
और दुष्ट व्यक्ति नियुक्त हो जाता है तो वह उस पद की गरिमा को
नष्ट कर देता है और वैसा ही एक योग्य तथा विद्वान् व्यक्ति द्वारा
निम्न श्रेणी के पद पर नियुक्त हो जाने से उस व्यक्ति की गरिमा भी
नष्ट हो जाती है | इस स्थिति का वर्णन इस सुभाषित में एक कव्वे और
गरुड की उपमा द्वारा बडे प्रभावी रूप से किया गया है | )
Ucchaasanagato neechah neecha eva na chottamah,
Praasaadashikharasyopi kaakh kim garudaayate.
Ucchaasanagato - uccha + Aasan + gato. Uccha = high.
Aasan = seat, a post. Gato = gone to any state or condition.
Neeechah = mean, inferior. Eva = already, really. Na = not.
Chottamah =cha + uttamah. Ca = and. Uttamah = excellent.
Praasadashikharasyopi = praasaad +shikharo + api.
Praasad = a castle. Shikharasya. = top, pinnacle Api =even.
Kaakah = a crow. Kim = can ? Garudaayate = acquire the
grandeur and status of an Eagle.
i. e. Mean and inferior persons posted in important posts,
and likewise excellent and knowledgeable persons occupying
insignificant posts, do not beautify such posts. Can an ordinary
crow sitting over the top of a castle match the grandeur of an Eagle
perched over there ? .
( Now a days it has become a routine that mean and incompetent
persons occupy very important posts and on the contrary noble and
knowledgeable persons languish in very insignificant postings ,
which results in decline of proper administration in all walks of life.
This Subhashita highlights this phenomenon nicely by the use of a
Simile of a crow and an eagle. )
it's true even nowadays
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