इन्द्रियं विजितं येन तेनैव भुवनं जितं |
यश्चेन्द्रियैः पराभूता स सर्वत्र पराजितः || - महासुभषितसंग्रह
भावार्थ - जिस व्यक्ति ने अपनी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करली हो
तो समझो कि उसने सारे संसार पर विजय प्राप्त कर ली है और यदि
कोई व्यक्ति अपनी इन्द्रियों द्वारा पराजित हो जाता है तो वह् जीवन
के हर क्षेत्र में पराजित हो जाता है |
(सनातन धर्म और भारतीय वाङ्ग्मय में सृष्टि की उत्पत्ति में सर्वप्रथम
पांच स्थूल तत्वो आकाश, वायुं तेज, जल, और पृथिवी और तत्पश्चात
जीवित प्राणियों की उत्पत्ति की परिकल्पना की गयी है जिन में मानव
सर्वश्रेष्ठ है | मानव अपनी बुद्धि तथा दस इन्द्रियों द्वारा जिन में पांच
ज्ञानेन्द्रियां आंख, नाक,जीभ, कान तथा त्वचा(स्पर्श), और पांच कर्मेन्द्रियां
हाथ,पैर, तथा वाक् (बोलना) मूत्र तथा मल द्वार है , अपना जीवनयापन |
करता है | यदि मनुष्य इन दसों इन्द्रियों तथा उनके वेगों को नियन्त्रित करने
में सफल होता है तो वह् अपने जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर लेता है |
यही इस सुभाषित का मुख्य संदेश है |}
Indriyam vijitam yena tenaiva bhuvanam jitam.
Yashchedriyaih paraabhootaa sa sarvatra paraajitah.
Indriyam = 5 sensory organs namely eyes, nose, tongue, ears, touch, and
5 organs of action namely hands , feet, ears, mouth, urinary tract and anus
in human beings. Vijitam = conquered, in overpowering.. Yena =whosoever.
Tasmaih = he, him. Bhuvanam - this world. Jitam = conquered.
Yashchaindriyaih + Yah + cha + indriyaih. Yah = whosoever. Cha = and.
Paraabhootaa = defeated, overcome . Sa = he, Sarvatra = everywhere.
Paraajitah = defeated.
i.e. Whosoever is successful in overpowering (controlling) his sensory
organs and the organs of action, it is as if he has won this entire world.
However , a person who has been defeated by his organs , gets defeated in
every walk of life.
(Control over the 10 organs of sense and action bestowed upon on human
beings is most important for success in life. This Subhashita highlights
this fact very beautifully.
यश्चेन्द्रियैः पराभूता स सर्वत्र पराजितः || - महासुभषितसंग्रह
भावार्थ - जिस व्यक्ति ने अपनी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करली हो
तो समझो कि उसने सारे संसार पर विजय प्राप्त कर ली है और यदि
कोई व्यक्ति अपनी इन्द्रियों द्वारा पराजित हो जाता है तो वह् जीवन
के हर क्षेत्र में पराजित हो जाता है |
(सनातन धर्म और भारतीय वाङ्ग्मय में सृष्टि की उत्पत्ति में सर्वप्रथम
पांच स्थूल तत्वो आकाश, वायुं तेज, जल, और पृथिवी और तत्पश्चात
जीवित प्राणियों की उत्पत्ति की परिकल्पना की गयी है जिन में मानव
सर्वश्रेष्ठ है | मानव अपनी बुद्धि तथा दस इन्द्रियों द्वारा जिन में पांच
ज्ञानेन्द्रियां आंख, नाक,जीभ, कान तथा त्वचा(स्पर्श), और पांच कर्मेन्द्रियां
हाथ,पैर, तथा वाक् (बोलना) मूत्र तथा मल द्वार है , अपना जीवनयापन |
करता है | यदि मनुष्य इन दसों इन्द्रियों तथा उनके वेगों को नियन्त्रित करने
में सफल होता है तो वह् अपने जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर लेता है |
यही इस सुभाषित का मुख्य संदेश है |}
Indriyam vijitam yena tenaiva bhuvanam jitam.
Yashchedriyaih paraabhootaa sa sarvatra paraajitah.
Indriyam = 5 sensory organs namely eyes, nose, tongue, ears, touch, and
5 organs of action namely hands , feet, ears, mouth, urinary tract and anus
in human beings. Vijitam = conquered, in overpowering.. Yena =whosoever.
Tasmaih = he, him. Bhuvanam - this world. Jitam = conquered.
Yashchaindriyaih + Yah + cha + indriyaih. Yah = whosoever. Cha = and.
Paraabhootaa = defeated, overcome . Sa = he, Sarvatra = everywhere.
Paraajitah = defeated.
i.e. Whosoever is successful in overpowering (controlling) his sensory
organs and the organs of action, it is as if he has won this entire world.
However , a person who has been defeated by his organs , gets defeated in
every walk of life.
(Control over the 10 organs of sense and action bestowed upon on human
beings is most important for success in life. This Subhashita highlights
this fact very beautifully.
No comments:
Post a Comment