धनिकः श्रोत्रियो राजा नदी वैद्यस्तु पञ्चमः |
पञ्च यत्र न विद्यन्ति न तत्र दिवसं वसेत् ||
भावार्थ - जिस स्थान में धनवान (तथा ऋण प्रदान करने
वाला) व्यापारी, वेद तथा शास्त्रों मे निपुण ब्राह्मण, एक
सक्षम राजा (शासक), एक सदानीरा नदी तथा चिकित्सा
हेतु वैद्य , ये पांचों उपलब्ध न हों, ऐसे स्थान में एक दिन
के लिये भी निवास नहीं करना चाहिये |
(एक समृद्ध तथा आत्मनिर्भर समाज के लिये इस सुभाषित
में वर्णित व्यक्ति तथा वस्तुएं , विशेषतः एक सदानीर नदी
तथा समाज को व्यवस्थित रखनेके लिये एक सक्षम शासक
अत्यन्त आवश्यक होता है | इतिहास गवाह है कि इस विश्व
में प्रमुख मानव सभ्यताओं का विकास गङ्गा, सिन्धु , नील
आदि बडी नदियों की उपत्यकाओं में ही महान् शासकों के
कार्यकाल में ही हुआ है |)
Dhanikah shrotriyo raaja nadee vaidyastu panchamah.
Pancha yatra na vidyanti tatra divasam vaset.
Dhanikah = a rich person, a money lender. Shrotriyo =
a learned brahmin well versed in scriptures and Vedas.
Raja = a king, a ruler. Nadee = a perennial river.
Vaidyastu = vaidyah + tu. Vaidyah = a physician, doctor.
Tu =and. Panchamah = fifth, five. Yatra = where.
Na = not. Vidyante = exist. Tatra = there. Divasam =
a day Vaset = should live.
i.e. At a place where a rich money lender, a learned
person well versed in scriptures and Vedas, a competent
King (or a ruler), a perennial river, and lastly a Physician
(Vaidya) are not available, one should not live (stay) even
for a day.
(For a progressive civilisation all the five pre-requisites
mentioned in this Subhashita are very essential, particularly
a perennial source of water and a competent ruler. This is
evident by the fact that all the great civilisations of this
World developed in the vallies of great rivers like Ganges,
Nile etc,etc, during the rule of great Kings.)
पञ्च यत्र न विद्यन्ति न तत्र दिवसं वसेत् ||
भावार्थ - जिस स्थान में धनवान (तथा ऋण प्रदान करने
वाला) व्यापारी, वेद तथा शास्त्रों मे निपुण ब्राह्मण, एक
सक्षम राजा (शासक), एक सदानीरा नदी तथा चिकित्सा
हेतु वैद्य , ये पांचों उपलब्ध न हों, ऐसे स्थान में एक दिन
के लिये भी निवास नहीं करना चाहिये |
(एक समृद्ध तथा आत्मनिर्भर समाज के लिये इस सुभाषित
में वर्णित व्यक्ति तथा वस्तुएं , विशेषतः एक सदानीर नदी
तथा समाज को व्यवस्थित रखनेके लिये एक सक्षम शासक
अत्यन्त आवश्यक होता है | इतिहास गवाह है कि इस विश्व
में प्रमुख मानव सभ्यताओं का विकास गङ्गा, सिन्धु , नील
आदि बडी नदियों की उपत्यकाओं में ही महान् शासकों के
कार्यकाल में ही हुआ है |)
Dhanikah shrotriyo raaja nadee vaidyastu panchamah.
Pancha yatra na vidyanti tatra divasam vaset.
Dhanikah = a rich person, a money lender. Shrotriyo =
a learned brahmin well versed in scriptures and Vedas.
Raja = a king, a ruler. Nadee = a perennial river.
Vaidyastu = vaidyah + tu. Vaidyah = a physician, doctor.
Tu =and. Panchamah = fifth, five. Yatra = where.
Na = not. Vidyante = exist. Tatra = there. Divasam =
a day Vaset = should live.
i.e. At a place where a rich money lender, a learned
person well versed in scriptures and Vedas, a competent
King (or a ruler), a perennial river, and lastly a Physician
(Vaidya) are not available, one should not live (stay) even
for a day.
(For a progressive civilisation all the five pre-requisites
mentioned in this Subhashita are very essential, particularly
a perennial source of water and a competent ruler. This is
evident by the fact that all the great civilisations of this
World developed in the vallies of great rivers like Ganges,
Nile etc,etc, during the rule of great Kings.)
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