ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था मध्ये तिष्ठन्ति राजसाः |
जघन्यगुणवृत्तस्था अधो गच्छन्ति तामसाः || - महासुभषितसंग्रह
भावार्थ - सात्त्विक स्वभाव के (गुणवान और सहृदय) व्यक्ति
उन्नति कर समाज में शीर्ष स्थान पर रहते है तथा भोग विलास में
लिप्त राजसी स्वभाव के व्यक्ति मध्यम श्रेणी के माने जाते हैं |
परन्तु तामसी स्वभाव के (क्रूर तथा दूसरों को हानि पहुंचाने वाले) व्यक्ति
निम्नतंम श्रेणी के अन्तर्गत वर्गीकृत किये जाते हैं |
(इस संसार में जितने भी प्राणी तथा वस्तुएं हैं उनका वर्गीकरण उनके
गुणों तथा स्वभाव के अनुसार तीन श्रेणियों सात्त्विक, राजसी और
तामसी में किया गया है तथा उनके लक्षण भी कहे गये है | इन का विशद
वर्णन श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय १७ में किया गया है | प्रस्तुत श्लोक
में मनुष्यों का वर्गीकरण उनके स्वभाव के अनुसार किया गया है } )
Urdhvam gacchanti satvasthaa madhye tishthant raajasaah,
Jaghanyagunavruttasthaa adho gaccchanti taamasaah.
Urdhvam = upwards, higher. Gacchanti = go. Satvasthaa =
Kind and virtuous persons. Madhya = in the middle, between.
Tishthanti = stay. Rajaasaah = persons endowed with the quality
of passion. Jaghanyagunavruttasthaa = jaghanya + guna +
vruttasthaa, Jhanya = worst, vilest. Guna = quality.
Vruttasthaa = engaged in activities. Adho = bottom.
Taamasaah = persons with a cruel and evil bent of mind.
i.e. Kind and virtuous persons occupy the highest position 'Sattvik'
in the society, and persons who are endowed with qualities of passion
and extravagance are of the middle category known as 'Rajas'. Persons
engaged in vilest activities and with a cruel bent of mind are categorized
in the lowest category known as 'Tamas' ;
(In the scriptures all living beings and things in this world have been
categorized in three categories according to their nature and qualities.
These are discussed inn detail in the 17th chapter of Bhagvadgeetaa.
The above Subhashita categorizes human beings accordingly.
जघन्यगुणवृत्तस्था अधो गच्छन्ति तामसाः || - महासुभषितसंग्रह
भावार्थ - सात्त्विक स्वभाव के (गुणवान और सहृदय) व्यक्ति
उन्नति कर समाज में शीर्ष स्थान पर रहते है तथा भोग विलास में
लिप्त राजसी स्वभाव के व्यक्ति मध्यम श्रेणी के माने जाते हैं |
परन्तु तामसी स्वभाव के (क्रूर तथा दूसरों को हानि पहुंचाने वाले) व्यक्ति
निम्नतंम श्रेणी के अन्तर्गत वर्गीकृत किये जाते हैं |
(इस संसार में जितने भी प्राणी तथा वस्तुएं हैं उनका वर्गीकरण उनके
गुणों तथा स्वभाव के अनुसार तीन श्रेणियों सात्त्विक, राजसी और
तामसी में किया गया है तथा उनके लक्षण भी कहे गये है | इन का विशद
वर्णन श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय १७ में किया गया है | प्रस्तुत श्लोक
में मनुष्यों का वर्गीकरण उनके स्वभाव के अनुसार किया गया है } )
Urdhvam gacchanti satvasthaa madhye tishthant raajasaah,
Jaghanyagunavruttasthaa adho gaccchanti taamasaah.
Urdhvam = upwards, higher. Gacchanti = go. Satvasthaa =
Kind and virtuous persons. Madhya = in the middle, between.
Tishthanti = stay. Rajaasaah = persons endowed with the quality
of passion. Jaghanyagunavruttasthaa = jaghanya + guna +
vruttasthaa, Jhanya = worst, vilest. Guna = quality.
Vruttasthaa = engaged in activities. Adho = bottom.
Taamasaah = persons with a cruel and evil bent of mind.
i.e. Kind and virtuous persons occupy the highest position 'Sattvik'
in the society, and persons who are endowed with qualities of passion
and extravagance are of the middle category known as 'Rajas'. Persons
engaged in vilest activities and with a cruel bent of mind are categorized
in the lowest category known as 'Tamas' ;
(In the scriptures all living beings and things in this world have been
categorized in three categories according to their nature and qualities.
These are discussed inn detail in the 17th chapter of Bhagvadgeetaa.
The above Subhashita categorizes human beings accordingly.
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