Friday, 10 March 2017

आज का सुभाषित / Today'sSubhashita.

कस्य वक्तव्यता नास्ति सोपायं को न जीवति  |
व्यसनं  केन  न  प्राप्तं  कस्य  सौख्यं  निरन्तरं  ||- महासुभषितसंग्रह(९२४८)

भावार्थ -   ऐसा कौन है जिसे  किसी अन्य व्यक्ति  के आधीन या उसके
ऊपर  निर्भर नहीं रहना पडता है ? और ऐसा कौन व्यक्ति होगा जो बिना
किसी संगी साथी के जीवन यापन कर सकता है ?   क्या ऐसा कोई व्यक्ति
होगा जिस में किसी प्रकार का कोई व्यसन न हो और क्या ऐसा कोई व्यक्ति
होगा जो निरन्तर सुखी ही  रहता है ?

(इस सुभाषित में भी प्रश्न पूछने के माध्यम से यह्  सत्य प्रतिपादित किया
गया है कि मनुष्य को किसी न किसी के आधीन या साथ में रहना ही पडता है |
इसी प्रकार कोई न कोई व्यसन भी लोगों में होता है तथा जीवन में सदैव सुख
ही सुख नहीं होता है |)

Kasya vaktavyataa naasti sopaayam ko na jeevati.
Vyasanam kena na praaptam kasya saukhyam nirantaram.

Kasya -= whose.     Vaktavyataa = dependence, having bad name,
Naasti =non-existent      Sopaayam = accompanied by some one.
Ko = who.   Na = not.    Jeevati = lives.    Vyasanam = addictions.
Kena = who ?   Praaptam = acquired, gained.  Kasya = whose ?
Saukhyam = happiness, comforts.   Nirantaram = perpetual.

i.e.    Can there be such a person who is not subordinate  to or dependent
on some other person, or can live  alone ?  Can there be such a person who
is free from any form of addiction in his life and has perpetually enjoyed
happiness and comfort ?

(In this Subhashita by framing questions the author asserts that no body
can exist alone in this world without being subordinate to or dependent on
others, and nobody is free from addictions and can not enjoy perpetual
happiness and comfort.

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