Wednesday, 5 April 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


कार्यं  च  किं परदोषदष्ट्या  कार्यं च किं  ते परचिन्तया च |
वृथा कथं खिद्यसि बालबुद्धे कुरु स्वकार्यं त्यज सर्वमन्यान् ||
                                                - महासुभषितसंग्रह (9726)

भावार्थ -   ओ बालसुलभ बुद्धि वाले व्यक्ति ! तुम्हारे द्वारा किये
जाने वाले कार्यों में अन्य व्यक्तियों को यदि कोई दोष दिखाई देता
है  या वे  चिन्तित होते हैं तो तुम व्यर्थ में क्यों दुःखी होते हो ?
तुम उन सब के उपदेशों की अवहेलना करते हुए अपने कार्यों को
कुशलता पूर्वक संपन्न करो |

( प्रायः यह  देखा गया है कि बाहरी व्यक्तियों  द्वारा किसी
व्यक्ति के द्वारा किये जाने वाले कार्यों की  आलोचना या
उनकी सफलता पर आशंका प्रकट की जाती है , जिस से भय
भीत हो कर लोग कार्य प्रारम्भ ही  नहीं करते हैं | इस सुभाषित
द्वारा ऐसे बालसुलभ सरल प्रकृति के व्यक्तियों को यह शिक्षा
दी गयी है कि वे इस प्रकार की आलोचना की चिन्ता छोड कर
निष्ठापूर्वक अपना कार्य संपादित करें |)

Kaaryam cha kim para-dosha-drushtayaa kaaryam cha tey
parachintayaa cha.
Vrithaa katham khidyasi baala- buddhe kuru svakaaryam
tyaja sarvamanyaan.

Kaaryam = work.   Cha = and.   Kim = what.  Para = others
Dosha = defects.   Drushtyaa = seen.    Tey =  those.
Chintayaa = worry, anxiety.    Vruthaa = unnecessary, in vain.
katham = why, how.  Khidyasi = feels distressed.  Baalabuddhe=
with childish behaviour .   Kuru = do.  Svakaaryam = your own
work.   Tyaja = leave, abandon.    Sarvamanyan = sarva + anyan.
Sarva = all.    Anyan = others.

i.e.     O gentleman with child-like innocence !   why do you feel
distressed at the fault finding and doubt expressed by outsiders on
the work to be undertaken by you ?  You should simply ignore
their advice and criticism and proceed with the work in hand with
determination and competence.

(Generally it is observed that people abandon a work due to the
criticism and doubts expressed by outsiders. This Subhashita
exhorts such people to ignore such criticism and relying on their
competence undertake their work.)

No comments:

Post a Comment