कार्यं च किं परदोषदष्ट्या कार्यं च किं ते परचिन्तया च |
वृथा कथं खिद्यसि बालबुद्धे कुरु स्वकार्यं त्यज सर्वमन्यान् ||
- महासुभषितसंग्रह (9726)
भावार्थ - ओ बालसुलभ बुद्धि वाले व्यक्ति ! तुम्हारे द्वारा किये
जाने वाले कार्यों में अन्य व्यक्तियों को यदि कोई दोष दिखाई देता
है या वे चिन्तित होते हैं तो तुम व्यर्थ में क्यों दुःखी होते हो ?
तुम उन सब के उपदेशों की अवहेलना करते हुए अपने कार्यों को
कुशलता पूर्वक संपन्न करो |
( प्रायः यह देखा गया है कि बाहरी व्यक्तियों द्वारा किसी
व्यक्ति के द्वारा किये जाने वाले कार्यों की आलोचना या
उनकी सफलता पर आशंका प्रकट की जाती है , जिस से भय
भीत हो कर लोग कार्य प्रारम्भ ही नहीं करते हैं | इस सुभाषित
द्वारा ऐसे बालसुलभ सरल प्रकृति के व्यक्तियों को यह शिक्षा
दी गयी है कि वे इस प्रकार की आलोचना की चिन्ता छोड कर
निष्ठापूर्वक अपना कार्य संपादित करें |)
Kaaryam cha kim para-dosha-drushtayaa kaaryam cha tey
parachintayaa cha.
Vrithaa katham khidyasi baala- buddhe kuru svakaaryam
tyaja sarvamanyaan.
Kaaryam = work. Cha = and. Kim = what. Para = others
Dosha = defects. Drushtyaa = seen. Tey = those.
Chintayaa = worry, anxiety. Vruthaa = unnecessary, in vain.
katham = why, how. Khidyasi = feels distressed. Baalabuddhe=
with childish behaviour . Kuru = do. Svakaaryam = your own
work. Tyaja = leave, abandon. Sarvamanyan = sarva + anyan.
Sarva = all. Anyan = others.
i.e. O gentleman with child-like innocence ! why do you feel
distressed at the fault finding and doubt expressed by outsiders on
the work to be undertaken by you ? You should simply ignore
their advice and criticism and proceed with the work in hand with
determination and competence.
(Generally it is observed that people abandon a work due to the
criticism and doubts expressed by outsiders. This Subhashita
exhorts such people to ignore such criticism and relying on their
competence undertake their work.)
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