राज्य और उसके राजा (शासक) की अवधारणा का विस्तृत विवेचन
'मनुस्मृति' के ७वें अध्याय में वर्णित है | उन्हीं में से कुछ चुने हुए और
सामयिक श्लोकों को आगामी कुछ दिनों तक मैं प्रस्तुत करता रहूंगा |
प्रस्तुत है आज का सुभाषित :-
दण्डःशास्ति प्रजाः सर्वा दण्ड एवाभिरक्षति |
दण्डः सुप्तेषु जागतिं दण्डं धर्मं विदुर्बुधाः || -श्लोक संख्या १८
भावार्थ - यह दण्ड (सजा देने की ) व्यवस्था ही सारी प्रजा पर
शासन करती है और वही उनकी सब प्रकार से रक्षा भी करती है |
इसी प्रकार यह दण्ड व्यवस्था समस्त शासकों के सो जाने पर भी
(अनुपस्थिति में ) जागृत रहती है और सब की रक्षा करती है | इसी
लिये ऋषियों ने इस दण्ड देने की व्यवस्था को साक्षात धर्म -स्वरूप
कहा है |
(इस दण्ड व्यवस्था में ह्रास के कारण वर्तमान स्थिति में अनेक देशों
में अराजकता व्याप्त है और वहां की प्रजा घोर कष्ट भोग रही है |)
Dandah shasti prajaah sarvaa danda evaabhirakshati,
dandah supteshu jaagatim dandam dharmam vidurbudhaah.
Dandah = the process of punishment for any wrong doing.
Shaasti = commands. Prajaah = the citizens of a country.
Sarvaa = all. Evaabhirakshati = eva + abhirakshati.
Eva = really, already. Rakshati = protects. Supteshu =
reference to the Rulers even when asleep. Jaagatim =
remains awake or alert. Dharmam = Religious austerity.
Vidurbudhaah = viduh + budhaah. Viduh = declared, said.
Budhaah = wise and enlightened sages.
i.e. This system of giving punishment to the guilty is the real
governance and protects all the citizens, and remains active
even when the Rulers are asleep (during their temporary
absence). Only due to this reason our sages have proclaimed
this system of punishment as a part and parcel of Religious
austerity.
(Complete failure of this system in many countries at present
is the main cause of anarchy and hardships being faced by the
citizens of those countries. )
'मनुस्मृति' के ७वें अध्याय में वर्णित है | उन्हीं में से कुछ चुने हुए और
सामयिक श्लोकों को आगामी कुछ दिनों तक मैं प्रस्तुत करता रहूंगा |
प्रस्तुत है आज का सुभाषित :-
दण्डःशास्ति प्रजाः सर्वा दण्ड एवाभिरक्षति |
दण्डः सुप्तेषु जागतिं दण्डं धर्मं विदुर्बुधाः || -श्लोक संख्या १८
भावार्थ - यह दण्ड (सजा देने की ) व्यवस्था ही सारी प्रजा पर
शासन करती है और वही उनकी सब प्रकार से रक्षा भी करती है |
इसी प्रकार यह दण्ड व्यवस्था समस्त शासकों के सो जाने पर भी
(अनुपस्थिति में ) जागृत रहती है और सब की रक्षा करती है | इसी
लिये ऋषियों ने इस दण्ड देने की व्यवस्था को साक्षात धर्म -स्वरूप
कहा है |
(इस दण्ड व्यवस्था में ह्रास के कारण वर्तमान स्थिति में अनेक देशों
में अराजकता व्याप्त है और वहां की प्रजा घोर कष्ट भोग रही है |)
Dandah shasti prajaah sarvaa danda evaabhirakshati,
dandah supteshu jaagatim dandam dharmam vidurbudhaah.
Dandah = the process of punishment for any wrong doing.
Shaasti = commands. Prajaah = the citizens of a country.
Sarvaa = all. Evaabhirakshati = eva + abhirakshati.
Eva = really, already. Rakshati = protects. Supteshu =
reference to the Rulers even when asleep. Jaagatim =
remains awake or alert. Dharmam = Religious austerity.
Vidurbudhaah = viduh + budhaah. Viduh = declared, said.
Budhaah = wise and enlightened sages.
i.e. This system of giving punishment to the guilty is the real
governance and protects all the citizens, and remains active
even when the Rulers are asleep (during their temporary
absence). Only due to this reason our sages have proclaimed
this system of punishment as a part and parcel of Religious
austerity.
(Complete failure of this system in many countries at present
is the main cause of anarchy and hardships being faced by the
citizens of those countries. )
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