कल हमने 'चातकान्योक्ति ' का एक उदाहरण प्रस्तुत किया था | आज एक
और उदाहरण 'शुकान्योक्ति' प्रस्तुत है , जिस में एक तोते को माध्यम के रूप में
प्रयुक्त किया गया है :-
शुक तव पठनं व्यसनं न गुणः किं तु स गुणाSSभासः |
समजनि येनोSSमरणं ते पञ्जरे वासः || - शार्ङ्गधर
भावार्थ - हे तोते ! तुम्हारी मानव की भाषा को बोलने की क्षमता वास्तव में तुम्हारा
एक दोष है न कि एक गुण है परन्तु एक गुण का आभास देता है | इस के फलस्वरूप
तुझे स्वच्छन्द हो कर वनों में निवास करने के स्थान पर मृत्यु पर्यन्त एक पिंजरे में
रहना पडता है |
(जीवन में कभी कभी ऐसी परिस्थितियां भी उत्पन्न हो जाती हैं कि किसी व्यक्ति के
गुण ही उसके लिये मुसीबत बन जाते हैं | इस वास्तविकता को यह सुभाषित एक
अन्योक्ति के रूप में बडी सुन्दरता से व्यक्त करता है | )
Shauka tava pathanam vyasanam na gunah kintu sa gunaabhaasah.
Samajani yeshaamaranam sharanam tey panjare vaasah.
Shuka = a parrot. Tava = your Pathanam = reading, Vyasanam =
defect, addiction. Na = not. Gunah = virtue. Kim = but. Sa = it
Gunaabhaasah = gives the impression of a virtue. Samajani = forests.
Yeshaamaranam = until the time of death. Sharanam = protection.
Tey = they. Panjare = a cage. Vasah = dwelling, abode.
i.e. O parrot ! your special ability to speak the language of humans
is in fact a big defect and not your virtue but just gives an impression
of a virtue. As a result of this instead of roaming freely in forests you
are doomed to live under the protection of a cage until your death.
(Yesterday an 'anyoakti' based on a Chaatak bird was posted. Today,
another 'anyokti' based on a Parrot has been posted . In life there are at
times such situations wherein a virtue puts a person in a very tricky
and disadvantageous situation, This fact has been indirectly highlighted
by the above Subhashita. )
और उदाहरण 'शुकान्योक्ति' प्रस्तुत है , जिस में एक तोते को माध्यम के रूप में
प्रयुक्त किया गया है :-
शुक तव पठनं व्यसनं न गुणः किं तु स गुणाSSभासः |
समजनि येनोSSमरणं ते पञ्जरे वासः || - शार्ङ्गधर
भावार्थ - हे तोते ! तुम्हारी मानव की भाषा को बोलने की क्षमता वास्तव में तुम्हारा
एक दोष है न कि एक गुण है परन्तु एक गुण का आभास देता है | इस के फलस्वरूप
तुझे स्वच्छन्द हो कर वनों में निवास करने के स्थान पर मृत्यु पर्यन्त एक पिंजरे में
रहना पडता है |
(जीवन में कभी कभी ऐसी परिस्थितियां भी उत्पन्न हो जाती हैं कि किसी व्यक्ति के
गुण ही उसके लिये मुसीबत बन जाते हैं | इस वास्तविकता को यह सुभाषित एक
अन्योक्ति के रूप में बडी सुन्दरता से व्यक्त करता है | )
Shauka tava pathanam vyasanam na gunah kintu sa gunaabhaasah.
Samajani yeshaamaranam sharanam tey panjare vaasah.
Shuka = a parrot. Tava = your Pathanam = reading, Vyasanam =
defect, addiction. Na = not. Gunah = virtue. Kim = but. Sa = it
Gunaabhaasah = gives the impression of a virtue. Samajani = forests.
Yeshaamaranam = until the time of death. Sharanam = protection.
Tey = they. Panjare = a cage. Vasah = dwelling, abode.
i.e. O parrot ! your special ability to speak the language of humans
is in fact a big defect and not your virtue but just gives an impression
of a virtue. As a result of this instead of roaming freely in forests you
are doomed to live under the protection of a cage until your death.
(Yesterday an 'anyoakti' based on a Chaatak bird was posted. Today,
another 'anyokti' based on a Parrot has been posted . In life there are at
times such situations wherein a virtue puts a person in a very tricky
and disadvantageous situation, This fact has been indirectly highlighted
by the above Subhashita. )
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