आज 'काकान्योक्ति' का एक उदाहरण प्रस्तुत है :-
तुल्यवर्णच्छदः कृष्णः कोकिलैः सह संगतः |
केन विज्ञायते काकः स्वयं यदि न भाषते || - शार्ङ्गधर
भावार्थ - एक कव्वे और कोयल के शरीर की बनावट और पंखों का
रंग एक समान काला ही होता है और वे एक साथ ही रहते हैं | यदि
कव्वा स्वयं नहीं बोले तो कोयल और कव्वे में भेद कौन कर सकता है ?
(कव्वा अपनी कर्कश ध्वनि और कोयल अपनी मधुर ध्वनि के लिये
प्रसिद्ध हैं | बाहरी रूप रंग दोनों का एक समान होने के कारण उनमें
भेद् करना कठिन होता है | परन्तु कव्वे की कर्कश ध्वनि और कोयल
की मधुर ध्वनि से उन्हें पहचानना सरल हो जाता है | यदि किसी मूर्ख
व्यक्ति को एक विद्वान व्यक्ति के परिधानों से अलंकृत कर दिया जाय
तो लोग उसे तभी तक विद्वान समझेंगे जब् तक वह कुछ बोलेगा नहीं |
जैसा कि एक अन्य सुभाषित में कहा है कि -'तावच्च शोभते मूर्खः यावत्
किञ्चिन्न भाषते ' | अर्थात एक मूर्ख व्यक्ति तभी तक सुशोभित होता
है जब तक वह कुछ बोलता नहीं है | तात्पर्य यह है बाहरी चमक धमक की
तुलना में गुणों की ही मान्यता अन्ततः होती है |)
Tulya-varnacchadah krushnah kokilaih saha smgatah.
Kena vigyaayate kaakh svayam yadi na bhaashate,
Tulya = similar, equal to. Varnacchada = colour of feathers and
outward appearance. Krushnah = black. Kokilaih = cuckoo bird.
Saha = with. Sangatah = association, friendship Kena = how ?
in what way ? Vigyaayate = distinguish. Kaakah = a crow.
Svayam = himself. Yadhi = if. Na = not. Bhaashate = speaks.
i.e. The outward appearance of a Crow and a Cuckoo bird and the
colour of their feathers is the same and they also live together. So ,
who can distinguish between them unless the crow himself does
not speak ?
(A crow is known for its very harsh voice and the cuckoo bird for
its very sweet voice. They can be distinguished only by their voice.
If a foolish person is presented in the attire of a scholar, people may
treat him as a scholar. But as soon as he utters some thing foolishly
his true worth is exposed. The underlying idea is that in contrast to
outwardly appearance the inherent virtues in a person are important.)
No comments:
Post a Comment