Monday, 17 July 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashia.

न  यत्र  गुणवत्पात्रमेकमप्यास्ति  सन्निधौ  |
कस्तत्र  भवत : पान्थ  कूपेSSम्बुग्रहणाSग्रहः || - (स्फुट)

भावार्थ -    ओ यात्री  !      तुम्हारे पास या निकट में एक लम्बी
डोर  युक्त एक भी पात्र (लोटा ) नहीं है | तो बताओ तुम इस कुवें
से जल किस प्रकार प्राप्त कर पाओगे ?

 (उपर्युक्त सुभाषित भी एक अन्योक्ति है |   प्राचीन काल में यात्री
अपने साथ एक लोटा और लम्बी डोरी रखते थे | प्यास लगने पर वे
मार्ग में कोई कुवां मिलने पर वे लोटा-डोर की सहायता से कुवें से जल
निकाल कर अपनी प्यास बुझा लेते थे |लाक्षणिक रूप से इस सुभाषित
का तात्पर्य यह है कि जब तक एक गुणवान और सुपात्र शिष्य नहीं होता है
वह् अपने गुरु से ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता है | यहां कुवां  गुरु का, जल
ज्ञान का,  यात्री शिष्य का,  तथा लोटा -डोर शिष्य के समर्पण -भाव  का
प्रतीक है |  गुण और पात्र द्विअर्थक रूप में प्रयुक्त किये गये हैं  | )

Na yatra gunavat-paatra-meka-mapyasti sannidhau.
Kastatra bhavatah  paantha  koopembugrahanaagrahh.

Na + not.    Yatra  = where.   Gunavat = having a long
rope.,   having virtuous.   Paatram = a utensil,  suitable
recipient.    Ekam = one       Api - even.      Asti = is
Sannidhau = in the vicinity, near.   Kastatra =  Kahh +
tatra.    Kahh= what    Tatra=there.   Bhavatah =  you.
Paantha = a traveller.   Koopembugrahanaagrahah ana =
Koope + ambu + grahana + aagrahh.   Koope = a well.
Ambu = water.   Grahana = receive.   Agraha =request.

i.e.    O traveller,  you do not possess a long rope and a
utensil . Then tell me how will you be able to fetch water
from the well and quench your thirst ?

(This Subhashita is also an 'Anyokti' ,  Here the words
'Guna' and 'Paatra' have two meanings, the second ones
being 'virtues' and  ' a worthy recipient'.  The well has
been alluded for the Teacher, water for knowledge and
the rope and utensil for the dedication of the student,
thereby implying that without dedication and being a
worthy recipient, one can not get knowledge from a Guru.)





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