चातकः स्वानुमानेन जलं प्रार्थयतेSम्बुदात् |
न स्वोदारतया सर्वा प्लावयत्यम्बुना महीम् || -शार्ङ्गधर
भावार्थ - एक चातक पक्षी अपने अनुमान (आवश्यकता)
के अनुसार मेघों से उसे जल प्रदान करने की प्रार्थना करता है |
परन्तु सभी मेघ उदार नहीं होते हैं और और आवश्यकता से भी
अत्यन्त अधिक जल प्रदान कर सारी पृथ्वी को जलप्लावित
(बाढ की स्थिति ) कर देते हैं |
(उपर्युक्त सुभाषित भी 'मेघान्योक्ति ' का एक सुन्दर उदाहरण
है | लाक्षणिक रूप से एक चातक के माध्यम से अतिवृष्टि से बाढ
उत्पन्न होने की स्थिति (तथा अनावृष्टि भी )के कारण लोगों को
होने वाली विपत्ति का वर्णन किया गया है )
Chaatakah svaanumaanena jalam praarthayatembudaat.
Na svodaaratayaa sarvaa Plaavayatyambunaa maheem.
Chatakah = a bird named Chatak. Svaanumaanena =
sva + anumaanena . Sva = one's own. Anumaanena =
guess. Jalam = water. Praarthyatembudaat = praartha-
-yate + +daat. Praarthayate = requests. Ambu =
water. Daat = given. Na = not. Svodaarataya =
sva = udaarataya. Udaaratayaa = liberally. Sarvaa =
all. Plaayatyambunaa = plaavayati + ambunaa.
Plaavayati = inundates. Ambunaa = by the water.
Maheem = the Earth.
i.e. A Chatak bird requests the clouds for rain according
to its requirements. But all the clouds are not so kind and
liberal and inundate the Earth with water (create floods).
(The above Subhashita is also a 'Meghaanyokti' . Through
the allegory of a 'Chaatak' bird, the author has described
the hardships faced by people due to floods (as also drought
like situation due to no rain) on account of erratic behaviour
of clouds .)
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