उत्तुङ्गमत्तमातङ्ग मस्तकन्यस्तलोचनः |
आसन्नेपि च सारङ्गे न वाञ्छा कुरुते हरिः || - शार्ङ्गधर
भावार्थ - जब एक पराक्रमी सिंह किसी मदमस्त और ऊंचे कद
के हाथी को ,जिसका मस्तक खुला हुआ और नेत्र उनींदे हों , देखता
है तो वह अपने निकट ही आखेट के लिये सुलभ हरिण की इच्छा
नहीं करता है ( और हाथी पर ही आक्रमण करता है ) |
( यह सुभाषित 'स्फुट ' शीर्षक के अन्तर्गत संकलित है | लाक्षणिक
रूप से इसका तात्पर्य यह है कि कोई शक्त्तिशाली व्यक्ति किसी
निरीह शक्तिहीन व्यक्ति को सताए या मारे तो उसमें कोई महानता
नहीं है | अपने समकक्ष व्यक्ति से ही प्रीतिऔर विरोध शोभा देते हैं |
तुलसीदास जी ने भी रामायण में कहा है कि - " प्रीति विरोध समान
सन करिय नीति असि आहि | जौं मृगपति वध मेढकन्हि भल कि
कहइ कोउ ताहि | )
Uttunga -matta -maatang mastakanyast alochanah.
Asannepi cha saarange na vaanchaam kurute harih.
Uttaunga= tall. Matta = boozed up, mad. Maatanga=
elephant. = mastaka + nyast +lochanh . Mastaka = head
Nyasta = exposed Lochan =eyes. Asannepi = aasanne +
api. Asanne = vicinity,proximity. Cha = and. Saarange =
spotted antelope. Na= not. Vaanchaam = desire. Kurute =
does. Harihi = a Lion.
i.e. Whenever a Lion sees a tall and boozed up elephant
with exposed head and sleepy eyes, he does not desire to kill
an antelope nearby ( who is an easy prey, and attacks the
elephant).
(The above Subhashita is also an 'Anyokti' classified as
'miscellaneous. The idea behind the allegory of a lion, deer
and an elephant, is that enmity (as also friendship) is proper
only between persons of equal status and not between meek
and powerful persons. Tulasi Daas, a Hindu poet has aptly
said that if a Lion kills frogs to sustain himself, no body will
appreciate it. )
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