Monday, 24 July 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


उत्तुङ्गमत्तमातङ्ग  मस्तकन्यस्तलोचनः  |
आसन्नेपि च  सारङ्गे  न  वाञ्छा  कुरुते हरिः    || - शार्ङ्गधर

भावार्थ  -    जब एक पराक्रमी सिंह किसी  मदमस्त और ऊंचे कद
के हाथी को ,जिसका मस्तक खुला हुआ और नेत्र उनींदे हों , देखता
है तो वह अपने निकट ही आखेट के लिये सुलभ हरिण की इच्छा
नहीं करता है  ( और हाथी पर ही आक्रमण करता है ) |

( यह सुभाषित  'स्फुट ' शीर्षक के अन्तर्गत संकलित है |  लाक्षणिक
रूप से इसका तात्पर्य यह है कि कोई शक्त्तिशाली व्यक्ति किसी
निरीह शक्तिहीन व्यक्ति को सताए या मारे तो उसमें कोई महानता
नहीं है | अपने समकक्ष व्यक्ति से  ही प्रीतिऔर विरोध शोभा देते हैं  |
तुलसीदास जी ने भी रामायण में कहा है  कि - " प्रीति विरोध समान
सन करिय  नीति असि आहि |  जौं मृगपति वध मेढकन्हि भल कि
कहइ  कोउ ताहि | )

Uttunga -matta -maatang  mastakanyast alochanah.
Asannepi cha saarange na vaanchaam kurute harih.

Uttaunga=  tall.    Matta = boozed up, mad.   Maatanga=
elephant.  = mastaka + nyast +lochanh .   Mastaka = head
Nyasta = exposed    Lochan =eyes.   Asannepi = aasanne +
api.    Asanne = vicinity,proximity.  Cha = and.   Saarange =
spotted antelope. Na= not.  Vaanchaam = desire.   Kurute =
does.  Harihi = a Lion.

i.e.     Whenever a Lion sees a tall and boozed up  elephant
with exposed head and sleepy eyes,  he does not desire to kill
an  antelope nearby ( who is an  easy prey, and attacks the
elephant).

(The above Subhashita is also an 'Anyokti' classified as
'miscellaneous.   The idea behind the allegory of a lion, deer
and an elephant, is that  enmity (as also friendship) is proper
only between persons of equal status and not between meek
and powerful persons.  Tulasi Daas, a Hindu poet has aptly
said that if a Lion kills frogs  to sustain himself, no body will
appreciate it. )

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