दिव्यं चूतरसं पीत्वा गर्वं नो याति कोकिलः |
पीत्वा कर्दमपानीयं भेको रटरटायते || -प्रसंग रत्नावली
भावार्थ - दिव्य (अतीव सुस्वादु ) आम के रस को पी कर एक कोयल
गर्वान्वित नहीं होती है , परन्तु कीचड युक्त जल पी कर ही एक मैंढक
लगातार टर्राता ही रहता है |
(उपर्युक्त सुभाषित भी एक 'अन्योक्ति' है | लाक्षणिक रूप से इसका
तात्पर्य यह है कि गुणवान और सज्जन व्यक्तियों का रहनसहन अच्छा
होने पर भी वे घमण्डी नहीं होते है और उनका व्यवहार संयत रहता है |
इसके विपरीत निम्न स्तर के व्यक्तियों का रहनसहन और व्यवहार
अच्छा नहीं होता है |)
Divyam chootarasam peetvaa garvam no yaati kokilah.
Peetvaa kardamapaaneeyam bheko ratarataayate
Divyam = Divine, wonderful. Chootarasam = the juice of a
mango. Peetva = by drinking. Garvam = pride. No = not.
Yaaati = go, becomes. Kokilah = cuckoo bird. Kardama =
muddy and filthy. Paaneeyam = water. Bheko = a frog.
Ratarataayate = makes croaking sound.
i.e. A Cuckoo bird who feeds on divine mango juice never
behaves proudly, whereas a frog who lives in muddy water and
also drinks it , expresses its pride by croaking continuously.
(This Subhashita is also an 'Anyokti' . The underlying idea is that
noble and virtuous persons never become proud of their lifestyle
and behave rationally,whereas the lifestyle of lowly persons is not
good and they are very proud and rude .)
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