Friday, 11 August 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.

परिशुद्धामपि वृत्तिं समाश्रितो दुर्जनः परान्व्यथते  |
पवनाशिनोपि  भुजगाः  परपरितापं  न  मुञ्चति     ||
                                             -   सुभाषित रत्नाकर

भावार्थ -    शुद्ध और सरल जीवन व्यतीत करने पर भी दुष्ट व्यक्ति
अन्य व्यक्तियों को हानि पहुंचाने की प्रवृत्ति का त्याग उसी प्रकार
नहीं कर सकते हैं जैसे कि वायु पर ही जीवित रहने वाले सर्प दूसरों
को हानि  और कष्ट पहुंचाने का अपना स्वभाव नहीं त्याग सकते हैं |

(यद्यापि सांपों का आहर अन्य छोटे जीवों जैसे  चूहे, मेंढक आदि होता
है वे एक लम्बे समय तक केवल वायुभक्षण द्वारा भी जीवित रह सकते
है  अर्थात उनका जीवनयापन सरल होता है परन्तु फिर भी सभी लोग
उनसे भय खाते हैं |  उनकी तुलना दुष्ट व्यक्तियों से कर यह प्रतिपादित
किया गया है कि चाहे दुष्ट व्यक्तियों का जीवनस्तर साधारण क्यों न हो
उनका दूसरों को हानि और कष्ट पहुंचाने का स्वभाव नहीं बदलता है  | )

Parishuddhaamapi   vruttim samaashrito durjanah paraanvyathate.
Pavanaashinopi  bhujagaah  paraparitaapam   na  munchati.

Parishuddhaamapi = parishuddhaam + api.     Parishuddhaam  =
clean., pure.    Api=even.   Vruttim = activity,    Samaashritopi =
Samaashrito + api.    Samaashrito = endowed with.    Durjanah=
a wicked person.    Paraanvyathate paraan + vyathate.   Paraan =
to other people.         Vyathate = causes  fear and  harm.
Pavanaashinopi = pavana +aashino+ api      Pavan= wind, air.
Ashino =. living on.    Bhujagaah = snakes.  Para = others.
Paritaapam = pain, agony.   Na = not.   Munchati = give up.

i.e.        Even if the lifestyle of wicked persons may be pure and
simple, they still  do not abandon their mentality of  causing fear
and harm to others,  just like the snakes subsisting mainly on air
do not give up their nature of causing agony and pain to others.

(Although snakes  subsist mainly on small animals like frogs, mice
etc,  they can live for long periods only on air . But still people are
afraid of them , and so is the case  with wicked persons who also have
the tendency of causing harm to others, which they can not abandon.)

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