यस्य राज्ञस्तु विषये श्रोत्रियः सीदति क्षुधा |
तस्यापि तत्क्षुधः राष्ट्रमचिरेणैव सीदति || मनुस्मृति (७/१३४)
भावार्थ - विद्वान और वेदों और शास्त्रों के ज्ञाता ब्राह्मण जिस
राजा के राज्य में अभावाग्रस्त हो कर भूख की यातना सहन करता है
तो शीघ्र ही उस राष्ट्र में (अकाल, अनावृष्टि, अतिवृष्टि आदि दैवी
उत्पातों के कारण) जनता भी भूखों मरने लगती है |
(प्राचीन काल में समाज को शिक्षित करने का कार्य ब्राह्मणों द्वारा ही
किया जाता था और उन्हें समाज में सर्वोच्च स्थान प्राप्त था | यदि
उन्हें भूखा रहना पडे तो अन्ततः ऐसे राष्ट्र की शासन व्यवस्था बुरी
तरह् प्रभावित होती है | वर्तमान व्यवस्था में जिस प्रकार शिक्षा के क्षेत्र
में अनेक कारणों से शिक्षकों की गुणवत्ता की ओर ध्यान नहीं दिया जा
रहा है वह् भविष्य में समाज में अव्यवस्था में ही वृद्धि करेगा | प्रस्तुत
श्लोक में नकारात्मक रूप से इसी समस्या को व्यक्त किया गया है | )
Yasya Raagyastu vishaye shrotriyah seedati kshudhaa .
Tasyaapi tatkshudhah raashtramachirenaiva seedati.
Yasya = in whose. Raagyasya = a King's (or a Ruler's)
vishaye = reference to the Kingdom. Shrotriyah = a brahmin
well versed in Vedas. Seedati = is distressed , suffers.
Kshudhaa =hunger. Tasya = his. Api = even. Tatkshudhah=
tat +kshudhah. Tat = that Kshudhah = hungry. Raashtram +
achirena + aiva. Raashtram = nation, kingdom. Achirena=
soon. Aiva = really.
i.e. If brahmins well versed in Vedas and scriptures have to
suffer from poverty and hunger in a Kingdom, then soon the
citizens of that Kingdom also have to suffer from hunger (due to
famine, drought or excessive rain and other calamities).
(During the times of Manu, the author of this Shloka, Brahmins
were the most revered category of people and were entrusted the
task of educating the people. In a negative way he warns the
Rulers to take good care of Brahmins. In the present times we now
observe that nobody cares to maintain the quality and standard\of
teachers, which is bound to cost the Nation dearly due to deteriora-
tion in moral and educational standard of the citizens .)
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