कल मैने 'मनुस्मृति' से एक श्लोक प्रस्तुत किया था जिसमे एक
'श्रोत्रिय' के भूखे रहने के कारण समाज को हानि होने का वर्णन किया
गया था | इस पर एक पाठक की जिज्ञासा थी कि अन्य वर्णों के बारे
में क्या कहा गया है | "मनुस्मृति'" ६०७ पेजों में १२ अध्यायों का एक
का एक विशाल ग्रन्थ है जिस में परमेश्वर द्वारा सृष्टि रचना से ले कर
मानव के उद्भव तथा तत्कालीन समाज व्यवस्था तथा उसके नियमन की
व्यवस्था का वर्णन है | वर्तमान में समाज के एक बडे वर्ग द्वारा उस
व्यवस्था को पूरी तरह नकार कर उसकी कटु आलोचना की जाती है और
उस में व्यक्त शाश्वत सत्यों को नकार दिया जा रहा है जो उचित नहीं है |
वह हमारे पूर्वजों के द्वारा संचित ज्ञान और तत्कालीन समाज व्यवस्था का
एक लिखित दस्तावेज है और उसे इसी रूप में लेना तथा उसकी अच्छी बातों
का अनुकरण करना ही श्रेयस्कर है | आगामी कुछ दिनों तक मैं कुछ चुने हुए
श्लोक प्रस्तुत करूंगा जिन्हें कृपया बिना किसी पूर्वाग्रह के पढें और मनन करें |
Yesterday I posted a shloka from "Manusmriti' dealing with the
after-effect of neglecting a teacher by the King (or a Ruler). One
reader wanted to know how the duties of other members of the
society are outlines in Manusmriti. It is a treatise running into 607
pages with 12 chapters detailing as to how the World came into
existence and evolution of human race and the social structure then
prevaailing, as also codified law to govern the people. Now a days
a big section of Society is very critical of 'Manusmriti and condemns
it totally, which is not proper, because it contains some eternal truths
which can not be neglected. It is a treatise of the wisdom of our fore-
fathers and describes the then prevailing religious, social and political
structure of the Society and should be treated accordingly without any
bias. During the coming days I will be posting some selected 'shlokas'
from Manusmriti for the benefit of members of the Group.
'श्रोत्रिय' के भूखे रहने के कारण समाज को हानि होने का वर्णन किया
गया था | इस पर एक पाठक की जिज्ञासा थी कि अन्य वर्णों के बारे
में क्या कहा गया है | "मनुस्मृति'" ६०७ पेजों में १२ अध्यायों का एक
का एक विशाल ग्रन्थ है जिस में परमेश्वर द्वारा सृष्टि रचना से ले कर
मानव के उद्भव तथा तत्कालीन समाज व्यवस्था तथा उसके नियमन की
व्यवस्था का वर्णन है | वर्तमान में समाज के एक बडे वर्ग द्वारा उस
व्यवस्था को पूरी तरह नकार कर उसकी कटु आलोचना की जाती है और
उस में व्यक्त शाश्वत सत्यों को नकार दिया जा रहा है जो उचित नहीं है |
वह हमारे पूर्वजों के द्वारा संचित ज्ञान और तत्कालीन समाज व्यवस्था का
एक लिखित दस्तावेज है और उसे इसी रूप में लेना तथा उसकी अच्छी बातों
का अनुकरण करना ही श्रेयस्कर है | आगामी कुछ दिनों तक मैं कुछ चुने हुए
श्लोक प्रस्तुत करूंगा जिन्हें कृपया बिना किसी पूर्वाग्रह के पढें और मनन करें |
Yesterday I posted a shloka from "Manusmriti' dealing with the
after-effect of neglecting a teacher by the King (or a Ruler). One
reader wanted to know how the duties of other members of the
society are outlines in Manusmriti. It is a treatise running into 607
pages with 12 chapters detailing as to how the World came into
existence and evolution of human race and the social structure then
prevaailing, as also codified law to govern the people. Now a days
a big section of Society is very critical of 'Manusmriti and condemns
it totally, which is not proper, because it contains some eternal truths
which can not be neglected. It is a treatise of the wisdom of our fore-
fathers and describes the then prevailing religious, social and political
structure of the Society and should be treated accordingly without any
bias. During the coming days I will be posting some selected 'shlokas'
from Manusmriti for the benefit of members of the Group.
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