सर्वस्यास्य तु सर्गस्य गुप्त्यर्थं स महाद्युतिः |
मुखबाहूरुपज्जानां पृथक्कर्माण्यकल्पयत् ||
- - मनुस्मृति (१- ८७ )
भावार्थ - अत्यन्त कान्तियुक्त सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी ने इस
सृष्टि के रक्षार्थ अपने मुख, भुजा, जंघाए, तथा पैरों से उत्पन्न किये
हुए क्रमशः ब्राह्मण, क्षत्रिय , वैश्य और शूद्र के कर्तव्य और कर्मों
की प्रथक प्रथक रचना की , अर्थात चारों वर्णों के लिये अलग अलग
धर्म बनाये |
(इस श्लोक की सर्वाधिक आलोचना इस लिये की जाती है कि इसके
आधार पर समाज के शूद्र वर्ण के लोगों को अस्पृश्य और हीन मान कर
उनका तिरस्कार किया जाता है और उन्हें उन्नति करने से वञ्चित
किया जाता है | वास्तव में यह वर्गीकरण योग्यता और कार्य कुशलता
के आधार पर है न कि जाति के आधार पर.| यहां तक कि पशु पक्षियों
का भी वर्गीकरण उनकी योग्यता के आधार पर हम करते हैं | बुद्धि का
वितरण मानव और अन्य प्राणियों में एक समान नहीं होता है | जिस
कार्य को करने के लिये बल की आवश्यकता होती है उसे बलवान व्यक्ति
ही कर सकता है | ऐसा ही शिक्षा, व्यापार आदि कार्यों पर भी लागू होता है |
कालान्तर में यदि इस व्यवस्था में यदि कुछ विकृति आ गयी तो उसे
दूर किया जा सकता था , जो शायद नहीं हुआ | परन्तु यदि योग्यता के
न होने पर भी यदि कोई कार्य किसी अयोग्य व्यक्ति को दिया जाय तो
उसका गम्भीर परिणाम होता है जो कि आज कल आरक्षण व्यवस्था के
कारण समाज के हर क्षेत्र में हो रहा है | जीवन के हर क्षेत्र में व्याप्त
अव्यवस्था का प्रमुख कारण यही है | बुद्धिमत्ता तो यही है कि हमें अपने
पूर्वजों के ज्ञान का समुचित उपयोग वर्तमान परिस्थितियों के अनुरूप
कर लाभान्वित होना चाहिये |
Sarvasyaasya tu sargasya guptyartham sa mahaadyutih.
Mukhabaahu-rupajjanaam pruthak-karmaanyakalpayet.
Sargasya = creation of the World. Mahadyutih =reference to God
Almighty, the creator of the World.
i.e. The omnipotent God Almighty with a view to protecting the
World created by him , created Brahmins, Kshatriya, Vaishya and
Shroodra community , respectively from his mouth, arms, thigh, and
feet, and also assigned different religious duties for them.
(The above Shloka is the most criticized one from the 'Manusmriti'
because 'shoodras' are considered untouchables and treated badly by
the society. In fact the above classification is on the basis of the
ability of persons for doing different types of work and not according
to their caste ( a later development). Even animals, birds and other
living beings are also classified according to their capabilities. The
level of intelligence among men and other living beings is not uniform
and a job needing physical strength cannot be performed by a weak
person and similarly different types of skills are required for teaching,
business, agriculture etc. With the passage of time this system got
distorted and should have been modified. This was not done. If an
important job is entrusted to an incompetent person it has very serious
consequences, as is happening in all areas of governance now a days.
The proper course would be to use the wisdom of our fore fathers
judiciously according to changed circumstance and not to condemn it
altogether.)
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