पशूनां रक्षणं दानमिज्याध्ययनमेव च |
वणिक्पथं कुसीदं च वैश्यस्य कृषिमेव च ||१/९०
एकमेव तु शूद्रस्य प्रभुः कर्म समादिशत् |
एतेषामेव वर्णानां शुश्रूषामनसूयया || १/९१ (मनुस्मृति )
भावार्थ - पशुपालन , दान देना, यज्ञ करना, वेदादि पढना, व्यापार
करना, व्याज (सूद) लेना , तथा खेती करना , ये कर्म वैश्यों के लिये
ब्रह्माजी ने निर्धारित किये | (श्लोक संख्या १/९० )
शूद्रों के लिये तो केवल एक ही धर्म विधाता ने यह बनाया कि वे
अपने से श्रेष्ठ तीन वर्णों की सेवा निष्ठापूर्वक करें | (१/९१ )
(उपर्युक्त श्लोक संख्या १/९१ की भी कटु आलोचना वर्तमान समय
में की जाती है | वास्तव में इस वर्ग में वे लोग आते हैं जो अशिक्षित
हों पर शारीरिक श्रम वाले कार्य कर सकते हों पर अन्य तीन वर्गों के
कार्यों को करने की योग्यता का अभाव हो | अतः उन्हें इन तीन वर्गों
के आधीन रह कर उनकी सेवा का भार सोंपा गया | कालान्तर में इस
व्यवस्था में क्रमशः विकृति आ गयी और कुछ समाजों में इस वर्ग के
लोगों को हेय दृष्टि से देखा जाने लगा और अछूत (वर्तमान में दलित )
कहा जाने लगा | कोई भी व्यवस्था हो उसमें कालान्तर में समयानुकूल
सुधार अपेक्षित होते हैं अन्यथा वह व्यवस्था अक्षम हो जाती है | इस में
मूल व्यवस्था को दोषी ठहराना भी उचित नहीं | यदि शिक्षा, स्वास्थ्य ,
वित्तीय अनुशासन आदि क्षेत्रों में अयोग्य या अकुशल व्यक्ति दलित
वर्ग के उत्थान के नाम पर नियुक्त किये जाते हैं तो उसके बहुत ही
बुरे परिणाम होते हैं | यह एक बुराई को दूसरी बडी बुराई से दूर करने
वाली बात हो जाती है | आरक्षण के बुरे परिणाम विशेषतः शिक्षा,स्वास्थ्य
और अन्य प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में स्पष्ट दिखाई दे रहा है | आवश्यकता
तो संतुलन बनाने की है , न कि पुरानी व्यवस्था को कोसने की |)
Pashoonaam rakshanam daanamijyaadhyayanameva cha.
Vanikpatham kuseedaaasym cha vaishyasya krishimeva cha.
Ekameva tu shoodrasya prabhuh karma samaadishat.
eteshaameva varnaanaam shushrooshaamanasooyayaa.
i.e. Animal husbandry , giving donations, studying scriptures,
handling the business of manufacturing trade and commerce, money l
ending, and agriculture are the duties assigned to 'Vaishya' community.
Serving as a servant of the other three superior Varnas with devotion is
the only duty assigned to the 'shoodra' Varna by the God Almighty.
(Manusmriti is severely criticized for the duties assigned to 'Shoodra'
Varna. In fact this category includes those persons who are illiterate and
not intelligent enough to perform the duties assigned to other three
categories. With the passage of time many discrepancies crept in this
system and the people of the fourth category were treated as outcasts
and untouchables (presently termed as Dalits) . Any system needs some
adjustments later on and if this is not done then it fails to give results.
So it is not proper to criticize the original system. If in the name of uplift
of Dalits , persons not having the requisite qualifications are posted in the
important fields of education, health and administration, it causes more
harm than good , as is apparent in these fields. So, there is need to maintain
proper balance in implementation of the reservation policy rather than merely
criticizing the old system. )
वणिक्पथं कुसीदं च वैश्यस्य कृषिमेव च ||१/९०
एकमेव तु शूद्रस्य प्रभुः कर्म समादिशत् |
एतेषामेव वर्णानां शुश्रूषामनसूयया || १/९१ (मनुस्मृति )
भावार्थ - पशुपालन , दान देना, यज्ञ करना, वेदादि पढना, व्यापार
करना, व्याज (सूद) लेना , तथा खेती करना , ये कर्म वैश्यों के लिये
ब्रह्माजी ने निर्धारित किये | (श्लोक संख्या १/९० )
शूद्रों के लिये तो केवल एक ही धर्म विधाता ने यह बनाया कि वे
अपने से श्रेष्ठ तीन वर्णों की सेवा निष्ठापूर्वक करें | (१/९१ )
(उपर्युक्त श्लोक संख्या १/९१ की भी कटु आलोचना वर्तमान समय
में की जाती है | वास्तव में इस वर्ग में वे लोग आते हैं जो अशिक्षित
हों पर शारीरिक श्रम वाले कार्य कर सकते हों पर अन्य तीन वर्गों के
कार्यों को करने की योग्यता का अभाव हो | अतः उन्हें इन तीन वर्गों
के आधीन रह कर उनकी सेवा का भार सोंपा गया | कालान्तर में इस
व्यवस्था में क्रमशः विकृति आ गयी और कुछ समाजों में इस वर्ग के
लोगों को हेय दृष्टि से देखा जाने लगा और अछूत (वर्तमान में दलित )
कहा जाने लगा | कोई भी व्यवस्था हो उसमें कालान्तर में समयानुकूल
सुधार अपेक्षित होते हैं अन्यथा वह व्यवस्था अक्षम हो जाती है | इस में
मूल व्यवस्था को दोषी ठहराना भी उचित नहीं | यदि शिक्षा, स्वास्थ्य ,
वित्तीय अनुशासन आदि क्षेत्रों में अयोग्य या अकुशल व्यक्ति दलित
वर्ग के उत्थान के नाम पर नियुक्त किये जाते हैं तो उसके बहुत ही
बुरे परिणाम होते हैं | यह एक बुराई को दूसरी बडी बुराई से दूर करने
वाली बात हो जाती है | आरक्षण के बुरे परिणाम विशेषतः शिक्षा,स्वास्थ्य
और अन्य प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में स्पष्ट दिखाई दे रहा है | आवश्यकता
तो संतुलन बनाने की है , न कि पुरानी व्यवस्था को कोसने की |)
Pashoonaam rakshanam daanamijyaadhyayanameva cha.
Vanikpatham kuseedaaasym cha vaishyasya krishimeva cha.
Ekameva tu shoodrasya prabhuh karma samaadishat.
eteshaameva varnaanaam shushrooshaamanasooyayaa.
i.e. Animal husbandry , giving donations, studying scriptures,
handling the business of manufacturing trade and commerce, money l
ending, and agriculture are the duties assigned to 'Vaishya' community.
Serving as a servant of the other three superior Varnas with devotion is
the only duty assigned to the 'shoodra' Varna by the God Almighty.
(Manusmriti is severely criticized for the duties assigned to 'Shoodra'
Varna. In fact this category includes those persons who are illiterate and
not intelligent enough to perform the duties assigned to other three
categories. With the passage of time many discrepancies crept in this
system and the people of the fourth category were treated as outcasts
and untouchables (presently termed as Dalits) . Any system needs some
adjustments later on and if this is not done then it fails to give results.
So it is not proper to criticize the original system. If in the name of uplift
of Dalits , persons not having the requisite qualifications are posted in the
important fields of education, health and administration, it causes more
harm than good , as is apparent in these fields. So, there is need to maintain
proper balance in implementation of the reservation policy rather than merely
criticizing the old system. )
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