यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता : |
यत्रै तास्तु न पूज्न्ते सर्वास्तत्राफला : क्रियाः ||
- मनुस्मृति (३/56
भावार्थ - जिस समाज (कुल) में स्त्रियों की पूजा (आदर और
प्रतिष्ठा ) होती है उस से देवता प्रसन्न रहते हैं अर्थात सर्वत्र सुख
और शान्ति रहती है | परन्तु जिस समाजमें स्त्रियों का अपमान
होता है या वे दुखी रहती हैं वहां सभी किये हुए कार्य असफ़ल् हो
जाते हैं |
(यह श्लोक मनुस्मृति के सबसे अधिक उधृत श्लोकों में गिना जाता है |
परन्तु व्यवहार में इस के ठीक विपरीत आचारण समाज में किया जाता
रहा है | मनुस्मृति में भी नारी की गतिविधियों को सीमित रखने के लिये
बडे कठोर नियम बनाये गये है और न ही उसे स्वतन्त्र निर्णय करने का
अधिकार दिया गया है और बाल्यावस्था से ले कर बुढापे तक पराधीन
रखने का प्रावधान किया गया है | इस संदर्भ मे कृपया दिनांक २३-८-२०१७
का सुभाषित देखें )
Yatra naaryastu paoojyante ramante tatra Devataa.
yatraitaastu na poojyante sarvastatraaphalaah kriyaah.
Yatra =where. Naaryastu = womenfolk. Poojyante = worshipped,
given due respect and authority.. Ramante = enjoy, remain happy.
Tatra = there. Devataa = Gods. Yatraitaastu = yatra+etah+ tu.
Etaah = these. Tu = but, and. Na = not. Sarvaastartaphalaah =
Sarvaah +tatra+ aphalaah. Sarvaah = all. Aphalaah = futile,
without any fruitful result. Kriyaah = activities, actions.
i.e. In a society where womenfolk are given due respect and
authority, Gods also remain happy and bestow prosperity. However,
in a society where women are not given due respect or are ill treated ,
all activities done do not bring any fruitful results.
(The above is one of the oft-quoted shlokas of "Manusmriti" . But in
practise just the opposite treatment is meted to women in the society.
There are provisions for imposing strict restrictions on women and they
are not allowed to take independent decisions and have to remain
dependent on men from childhood to old age. In this connection please
refer to the Subhashita posted on 23rd August,2017 .)
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