स्वाSSयत्तमेकान्तगुणं विधात्रा विनिर्मितं छादनमज्ञतायाः |
विशेषतः सर्वविदां समाजे विभूषणं मौनमपण्डितानां ||
-भर्तृहरि (नीति शतक )
भावार्थ - सर्व समर्थ विधाता ने अकेले एक ऐसे गुण का निर्माण किया है जिस
की सहायता से लोग अपने अशिक्षित या कम शिक्षित होने के दुर्गुण को छुपा
सकते हैं | और यह गुण है मौन धारण करना (कुछ नहीं बोलना) | विशेषतः विद्वानो
की सभा में यह गुण उनके लिये एक आभूषण के समान उनकी शोभा बढाता है |
(एक अन्य सुभाषित में भी कहा गया है कि - 'तावच्च शोभते मूर्खः यावत् किञ्चिन्न
भाषते ' - अर्थात एक मूर्ख व्यक्ति विद्वानों की सभा में तभी तक सुशोभित रहता है
जब तक कि वह् कुछ बोलता नहीं है | जहां उसने कुछ कहा उसकी मूर्खता उजागर
हो जाती है | )
Svaayattamekaantagunam vidhaaya vinirmitam chaadanamagyataayaah.
Visheshatah sarvavidaam samaaje vibhooshanam maunamapanditaanaam.
Svaayatta = one's own master Ekaant = only one. Gunam = virtue.
Vidhaatraa = fate, destiny. Vinirmitam = created. Chadanamagyataayaa=
Chadaanam = covering up. Agyataayaa = idiocy, ignorance. Visheshatah=
specially. Sarva - all. Vidaam = learned persons. Samaaje = assembly of.
Vibhooshanam = splendour, beauty. Maunamapanditaanaam = maunam +
apanditaanaam. Maunam = maintain silence, . Apanditaanaam =illiterate.
i.e. Almighty destiny has created a virtue by adopting which illiterate or
semi-literate people can cover up their shortcoming. That virtue is to maintain
silence (not to speak anything), particularly in an assembly of learned persons,
where this virtue embellishes their personality like an ornament .
(In another Subhashita dealing with this subject , it has been said that as soon
as a foolish persons speaks something, his ignorance and foolishness gets
exposed immediately.)
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