यस्यार्थास्तस्य मित्राणि यस्यार्थास्तस्य बान्धवाः |
यस्याSर्थः स पुमांल्लोके यस्याSर्थः स च पण्डितः ||
- शार्ङ्गधर
भावार्थ - जिन व्यक्तियों के पास धन और संपत्ति हो तो सभी उन
का मित्र बनना चाहते हैं तथा |धनवान व्यक्तियों के निकट संबन्धी
भी सदैव उन के निकट संपर्क में ही बने रहते हैं | जिस व्यक्ति के पास
धन हो तो वह् (योग्यता न होने पर भी ) एक महान तथा विद्वान व्यक्ति
के समान समाज में सम्मानित किया जाता है |
(इसी आशय का एक अन्य सुभाषित भर्तृहरि रचित " नीति शतक " मे भी
इस प्रकार है :-
यस्याSस्ति वित्तं स नरः कुलीनः स पण्डितः स श्रुतवान्गुणज्ञः |
स एव वक्ता स च दर्शनीयः सर्वे गुणाः काञ्चनमाश्रयन्ति ||
अर्थात धनवान व्यक्ति योग्य न होने पर भी एक कुलीन , विद्वान ,
शास्त्रों का ज्ञाता , गुणवान, वक्ता तथा दर्शनीय व्यक्ति के समान आदर
पाता है |क्यों कि सारे गुण स्वर्ण (धन संपत्ति का प्रतीक) पर ही आश्रित हैं |)
Yasyaarthaastasya mitraani yasyaarthaastasya Baandhavaah .
Yasyaarthah sa pumaamlloke yasyaarthah sa cha panditah.
Yasyaarthaastasya. = Yasya = who. + Arthaah = wealth, +
Tasya= his. Mitraani = friends. Baandhavaah = relatives.
Sa = he. Pumaamlloke = Pumaam + loke. Pumaam =
honourable person. Loke = in the society. Panditah= a
learned person.
i.e. Every body wants to befriend wealthy persons and the
relatives of such persons always try to be near to him . A rich
person (even if he may not be a capable person) is treated as a
great and knowledgeable person in the society
(Another poet Bhartruhari has written the following Subhashita
having a similar theme, but adding further that all the virtues are
subservient to the Gold (representing wealth).
Yasyaasti vittam sa narah kuleenah sa Panditah sa shrutivaan
gunagyah.
Sa eva vaktaa sa cha darshaneeyah sarve gunaah kaanchan
-maashryanti. )
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