Monday, 2 October 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


वने रणे  शत्रुजलाब्धिमध्ये  महार्णवे पर्वतमस्तके  वा  |
सुप्तं प्रमत्तं विषमस्थितं वा रक्षन्ति पुण्यानि पुरकृतानि ||
                                                    - भर्तृहरि (नीतिशतक)
o.
भावार्थ -   मनुष्य द्वारा  बहुत पहले (या पूर्वजन्म में) अर्जित किये हुए पुण्य
उसकी  वनों में , युद्धक्षेत्र में ,  शत्रुओं के बीच में , सरोवरों और समुद्र के बीच में ,
दुर्गम पर्वतों की चोटियों पर,  मदोद्धत होने की या किसी अन्य विषम  परिस्थिति
में  सदैव उसकी रक्षा करते हैं |

(सनातन धर्म की मान्यता है कि यदि कोई व्यक्ति धर्म के द्वारा निर्धारित
नियमो का निष्ठा पूर्वक पालन करते हुए जीवनयापन करता है तो वह ''पुण्य'
अर्जित करता है जिसके फलस्वरूप वह अपने अगले जन्म में संपन्न और विद्वान
कुल में जन्म लेता है और हर प्रकार के कष्टों से उसकी रक्षा होती है | इसी विचार
को उपर्युक्त सुभाषित में भी व्यक्त किया गया है |  )

Vane rane shatrujalaabdhimadhye  mahaarnave parvatmastake vaa.
Suptam pramattam vishamasthitam vaa rakshanti punyaani purakrutaani.

Vane = forest.    Rane = in a battle.   Shatru = enemy.    Jala = water.
Abdhi = lake,    Madhye = in the middle of.    Mahaarnave = Ocean.
Parvatmastake = peak of a mountain.   Vaa = or.    Suptam = sleeping.
Pramattam = drunk.    Vishamasthitam = dangerous situation.  Rakshanti=
provide protection.    Punyaani = virtuous deeds .   Puraakrutaani = done
formarly or long ago.

 The 'Punya'  earned by a person long ago (or in his previous birth) protect
him from dangers in forests, battle field, from his enemies, in lakes and
oceans, mountain peaks, while in a drunken state or asleep, as also various
other difficult situations'

(According to Sanatan Dharma, the Hindu Religion, if a person leads a
virtuous life , he earns certain plus points called 'Punya' , which help him to
lead a happy life in his next birth. On the other hand if he leads a sinful life ,
he earns negative points called 'Paap' (sins). This subhashita deals with this
aspect of the Religion.)

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