केतकीकुसुमं भृङ्गः खण्ड्यमानोSपि सेवते |
दोषाः किं नाम कुर्वन्ति गुणाSपहृतचेतसः || - सुभषित रत्नाकर
भावार्थ - एक काला भंवरा केतकी के पुष्पों की सुगन्ध से आकर्षित
हो कर अपनी सुधबुध भुला कर टुकडे -टुकडे होने तक उसी के वृक्ष पर
मंडराता रहता है | देखो तो ! केवल गुणों को ही देख कर और अपने
विवेक को खो देने और अवगुणों की अवज्ञा करने का कैसा बुरा परिणाम
होता है |
( प्रस्तुत सुभाषित भी एक 'अन्योक्ति है |केतकी के वृक्ष में सुगन्धित पुष्पों
के अतिरिक्त कांटे भी बहुत होते हैं | केवल सुगन्ध से आकर्षित हो कर और
कांटों की अवज्ञा करने के कारण भंवरा उनमें फंस कर खण्ड- खण्ड हो जाता है |
लाक्षणिक रूप से इस सुभाषित का तात्पर्य यह है कि केवल वाह्य आकर्षण से
प्रभावित हो कर और दोषों की अवज्ञा कर किसी से संबन्ध बनाने का परिणाम
बहुत बुरा होता है | अतः सोच समझ कर ही किसी से संबन्ध बनाना चाहिये |)
Ketakee-kusumam bhrungah khandyamaanopi sevate.
Doshaah kim naama kurvanti gunaaapahrutachetasah.
Ketakee = name of a flower having very powerful fragrance.
Kusumam = a flower. Bhrungah = a large black bee.
Khandyamaanopi = khandyamaano + api. Api = even.
Khandyamaano = broken into pieces. Sevate = serves, stays
near. Doshaah = shortcomings, defects. Kim = what ?
Naam =what. kurvanti = do. Gunaapahrutatejasaah =
Gunaa + aphruta + chetasah. Gunaa virtues. Apahruta=
taken away. Chetasah = mind.
i.e. Attracted by the powerful fragrance of Ketakee flowers,
and losing its discretion a large black bee hovers over the flowers
util such time it gets reduced to pieces . See, what are the fatal
consequences of having a relationship by being attracted only by
the virtues and ignoring the shortcomings .
(This Subhashita is also an 'allegory' . The Ketakee tree is also
full of a very large number of thorns, which, if ignored by the bee
results in its destruction. So, the underlying idea behind this
Subhashita is that one should not enter into a relationship by simply
being attracted by a quality and ignoring other shortcomings.)
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