कुत आगत्य घटते विघट्य क्व नु याति च |
न लक्ष्यते गतिः सम्यग्घनस्य च धनस्य च ||
- सुभाषित रत्नाकर (स्फुट)
भावार्थ - बादलों और धन-संपति के विषय में कि वे कहां से आते
हैं और आने के पश्चात फिर कहां चले जाते हैं , तथा उनके आने तथा
जाने की गति का सही अनुमान कभी भी नहीं लगाया जा सकता है |
(प्रस्तुत सुभाषित 'धनधनियोर्निन्दा' शीर्षक के अन्तर्गत संकलित है |
धनसंचय तथा उसे बनाये रखने की समस्या को धन की तुलना बादलों
के आने और जाने तथा वृष्टि होने की अनिश्चितता से कर प्रभावी रूप
से व्यक्त किया गया है | )
Kuta aagatya ghatate vighatya kva nu yaati cha.
Na laksahyate gatih samyag-ghanasya cha dhanasya cha.
Kuta = from where. Aagatya = having come. Ghate =
happens. Vighatya = after happening. Kva = where.
Nu = a prefix to emphasise. Yaati = go. Cha = and.
Na = not. Lakshyate = appears. Gatih = speed.
Samyagghanasya = samyak + ghanasya. Samyak =exactly,
correctly. Ghanasya =of a cloud. Cha =and. Dhanasya=
of the wealth.
i.e. No body can correctly guess as to from where the
clouds and wealth will come and after having come where
they will go. Further , the speed at which they will come and
go is also uncertain.
(The above Subhashita compares acquisition of wealth with the
behaviour of clouds and says that both are unpredictable. )
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