वित्तमत्तो हि नापीशं मनुते क्वेतरे तदा |
श्रीराममप्यनादृत्याSगर्जद्रत्नाकरः किल ||
- सुभाषित रत्नाकर (अच्युतरायजी )
भावार्थ - अपनी धन-संपत्ति के कारण मत्त (गर्वित्) लोग
ईश्वर को भी साधारण व्याक्तियों के समान कुछ नहीं समझते
हैं | इसी कारण से रत्नों की खान समुद्र ने गर्जना करते हुए भगवान
श्री राम का भी अनादर कर दिया |
(प्रस्तुत सुभाषित में रामायण में वर्णित श्रीराम द्वारा लंका पर
आक्रमण करने के लिये समुद्र में सेतु निर्माण के कथानक को एक
रूपक के रूप मे प्रयुक्त किया है | अनेक बार प्रार्थना करने पर भी
समुद्र द्वारा मार्ग न दिये जाने पर श्रीराम समुद्र को सुखाने के लिये
उद्यत हुए तभी समुद्र ने उन्हें सेतु बांधने के विधि बताई | यहां
समुद्र एक अति धनवान व्यक्ति का प्रतीक है |
Vittamatto hi naapeesham manute kvetare tadaa,
Shriraammapyanaadrutyaagarjadratnaakarah kila.
Vittamatto = vitta +matto. Vitta = wealth. Matto =
drunk, proud. Hi = surely Naapeesham = na +
api + eesham Na = not. Api even. Esham =God.
Manute = think Kvetare = kva + itare. Kva = how
Itare = different from, another. Tadaa= then.
Shri Ramam + Api + Anaadrutyaa + agarjat +
Ratnaakarah. Anaadrutya = without respecting.
Agarjat = grouled, roared. Ratnaakarah = the ocean,
as a depositary of jewels and minerals. Kila =allegedly.
i.e. Rich persons very proud of their wealth treat even
the God like ordinary persons. That is why the Ocean
without paying due respect to God Shri Ram growled and
roared before him.
(In this Subhashita an episode of Ramayan regarding cons-
-truction of a bridge over the Ocean for attacking Lanka by
Shri Ram has been used as an allegory. When even after
many requests the Ocean did no pay any heed, Shri Ram
decided to dry up the Ocean and then only the Ocean told
him as to how the bridge should be constructed. Here the
Ocean symbolises a rich person.)
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