Tuesday, 5 December 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita


वक्रोSस्तु  बाल्ये तदनु प्रवृद्धः कलङ्कवानस्तु जडोSस्तु  चन्द्रः |
महेश मौलौ  च  पदं  दधातु  जायेत  वन्द्यो  विविधोपकारात्  ||
                                          -  सुभाषित रत्नाकर (शार्ङ्गधर )
भावार्थ -  चन्द्रमा बाल्यावस्था में  वक्र (टेढा ) होता है और तत्पश्चात् पूर्ण आकार
और कलङ्क (धब्बे) प्राप्त कर जड ( आकार  कार में छोटा ) होने लगता है | परन्तु
भगवान शिव द्वारा उसे अपने शिर पर धारण करने के फलस्वरूप अनेक दोष होने
पर भी उच्च पद प्राप्त  होने से अनेक प्रकार से वन्दनीय हो जाता है |

(गत दिवस के सुभाषित में भी भगवान शिव द्वारा अपने मस्तक पर चन्द्रमा को
धारण करने को एक उपमेय के रूप में प्रयुक्त कर पराश्रय के कष्टों को व्यक्त किया
गया था | आज उसी उपमेय को एक अन्य रूप में महान व्यक्तियों द्वारा अपनाये
जाने के कारण साधारण व्यक्तियों के  भी सम्मानित होने के कारण के रूप में प्रस्तुत
किया गया है | )

Vakrostu  baalye tadanu pravruddhah kalankavaanastu jadostu chandrah.
Mahesh -maulau cha padam dadhaatu jaayet vandyo vividhopakaaraat.

Vakro+ astu.   Vakro = curved.   Astu = is.   Baalye = boyhood.  Tadanu=
afterwards, thereafter.   Pravruddhah = fully developed.  Kalankavaan +
ast.   Kalankvaan = with a blot or stain.  Jadoh =tu.    Jado = dull., wanes
Tu =and,but.  Chandrah =the Moon.  Mahesha =another name of God Shiva.
Maulau = over the head.     Cha = and.      padam = a prominent position.
Dadhatu = put,placed.   Jaayet = becomes.    Vndyo = venrable, adorable.
Vividha + upakaaraat.   Vvidha= various.   Upakaaraat = benefits,  favours.

i.e.   The Moon during its boyhood (waxing stage)  is curved and on being
fully grown up develops black spots and becomes dull (waning stage)   But
on being given a prominent place over his head by Lord Shiva , in spite of
all  these shortcomings,  the Moon becomes venerable  and gets various
benefits and favours.

(Like the yesterday's Subhashita, the legend of Lord Shiva using the crescent
Moon as an adornment over his head, has been used as a simile, but for a
different purpose. Unlike the problems faced  by a person dependent on others,
here  the benefits of  being closely associated  with  great persons has been
emphasised in this Subhashita.)


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