Tuesday, 16 January 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


यो न ददाति न भुङ्क्ते सति विभवे नैव तस्य तद्द्रव्यम्   |
तृणमयकृत्रिमपुरुषो रक्षति सस्यं परस्यार्थे  ||
                                        -सुभाषित रत्नाकर (शार्ङ्गधर )

भावार्थ -    जो व्यक्ति न तो अपनी संपत्ति को दान करता है और
न स्वयं ही उसका उपभोग करता है , वास्तव में वह संपत्ति उस की
नहीं होती है | वह व्यक्ति तो एक घास से बनाये हुए एक  मानव पुतले
के समान है जिसे  कृषि उपज की वन्य पशुओं और  पक्षियों से  रक्षा
करने के लिये किसी  खेत में  खडा कर दिया जाता है |

(प्रस्तुत सुभाषित ;कृपणनिन्दा'  शीर्षक के अन्तर्गत संकलित है | इसमें
एक कृपण व्यक्ति की तुलना  खेत में खडे किये हुए एक मानव पुतले से
की गयी है जो सटीक है |)

Yo na dadaati na bhunkte sati vibhave naiva tasya taddruvyam,
Trunamaya-krutrima-purusho rakshati sasyam parasyaarthe.

Yo =whosoever.   Na = not.   dadati = gives.   Bhunkte = consumes.
sati =  truly.    Vibhave = wealth.    Naiva=  no.     Tasya = his.
Taddruvyam = tat +druvyam.    tat = that.   Druvyam = money.
Trunamaya = made of graass.  Krutrrim = artificial.   Purusho =
a person.   Rakshati = protects.   Sasyam = crop.  Parasyaarthe=
parasya + arthe.    Parasya = others.   Arthe =for the sake of.

i.e.    A person who neither donates his wealth nor consumes it for
his own benefit ,  that wealth is truly speaking not his wealth. He is
just like a scare-crow made out of grass  erected on a field to ward
off animals and birds for protecting the crop .

(In the above Subhashita a miser as been most aptly compared to a
scare-crow erected in a field  to protect the crop.)

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