Saturday, 6 January 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


उपभोक्तुं  न  जानाति श्रियं  प्राप्याSपि  मानवः |
आकण्ठजलमग्नोSपि  श्वा  लिहत्येव  जिह्वया  ||
                                  - सुभाषित रत्नाकर (स्फुट)

भावार्थ -      जिस प्रकार  अपने कंठ (गले) तक जल में डूबा हुआ
एक कुत्ता जल को अपनी जिह्वा (जीभ) से चाट कर पीता है वैसे
ही कुछ लोग बहुत धनवान होते हुए भी अपनी प्रचुर संपत्ति का
उपभोग करना नहीं जानते  हैं |

(उपर्युक्त सुभषित में एक कृपण (कंजूस) व्यक्ति की निन्दा उसकी
तुलना एक कुत्ते से कर की गयी है जो अपनी आदत से लाचार जल को
चाट कर पीता है | )

Upabhoktum na jaanaati shriyam praapyaapi maanavah.
Aakantha  jalamagnopi shvaa lihatyeva  Jihvayaa .

Upabhoktum = consuming, enjoying.   Na = not.   Jaanaati=
knows,  learnt.        Shriyam = prosperity.         Praapyaapi =
praapya = available, accessible.   Api - even.     Maanavah =
a person.   Aakantha = up to the throat.  Jalamagnopi =jala +
magno + api.  Jala = water.   Magno = immersed in.   Shvaa =
a dog.   Lihatyeva = lihati +eva.    Lihati = licks.   Eva=really.
Jihvayaa = by the tongue.

i.e.   Just as a dog immersed in water up to his neck still drinks
water by licking it, in the same manner some very rich persons
do not know  how consume and enjoy their immense wealth.

(In the above Subhashita miserly persons have been criticized by
comparing them to a dog , whose habit is  to drink water by licking
it (symbolising miserly behaviour) .





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