Tuesday, 9 January 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


कशायैरुपवासैश्च  कृतामुल्लोपतां  नृणाम्| 
निजौषधकृतां  वैद्यो  निवेद्य  हरते धनम्  ||
                                     -सुभाषित रत्नाकर (विश्व गुणादर्श:)

भावार्थ - विभिन्न वनस्पतियों का कषाय (रस  या काढा) पीने से
तथा उपवास करने से लोग रोगमुक्त हो जाते है , पर उसी उद्देश्य
से  अपनी ही बनायी हुई औषधियां  दे कर एक वैद्य लोगों से धन
हरण करता  है |
 (प्रस्तुत सुभाषित "कुवैद्योपहासः " शीर्षक के अन्तर्गत संकलित
है | अनेक साधारण रोग दैनन्दिन उपयोग में आने वाली वस्तुओं
जैसे, लहसुन, अदरख , जीरा अजवाइन तुलसी आदि के सेवन से .
(जिसे हम  घरेलू उपचार कहते हैं) दूर हो जाते हैं | उसी हेतु जब कोई
वैद्य या डाक्टर  बहुत मंहगी दवा देता है तो वह वास्तव में धन हरना
ही कहा जा सकता है |  वर्तमान समय में यह  अब एक बडी समस्या
और कुप्रथा बन गयी है, विशेषतः विदेशी उपचार पद्धति में  | इसी
प्रवृत्ति का इस सुभाषित  में उपहास किया गया है |)

Kashaayairupavaasaishcha  krutamullopataam nrunaam.
/Nijaushadhakrutaaam vaidyo  nivedya harate dhanam.

Kaashaayairupavaasaishcha = kashayaih + upavasaih +cha.
Kashayaih = aromatic astringents,   Upavaasah = fasting.
Cha = and.  krutaamullopataam = krutaam +ullopataam.
Krutaaam = by doing.   Ullopataam = taking out, get cured.
Nrunaam = people.   Nijaushadhakrutaam =  nija + ausshadha
+ krutaam.    Nija = his own.   Aushadha = medicine.  Vidyo=
a  physician practicing Ayurveda,the Indian system of treating
diseases.     Nivedya = by offering or prescribing.      Harate =
takes away,    Dhanam = money, wealth.

 i.e.   People get cured  from common ailments by using aromatic
astringents easily available in our day-to-day life , but if for their
 treatment a Vaidya prescribes his own costly medicines, he robs
people of their wealth.

(This Subhashita is classified under the caption 'criticism of a
Vaidya' .  There are many diseases which can be cured by the use
of commonly used herbs and vegetation used in our day to day life.
But if a doctor prescribes his own or patented costly medicines for
curing these ailments, he definitely robs the people of their wealth.
This tendency of prescribing very costly medicines is now-a-days
very rampant , particularly in western system of medical treatment.)

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