Saturday, 10 February 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अन्तःसारविहीनस्य  सहायः किं करिष्यति  |
मलयेSपि  स्थितो वेणुर्वेणुरेव  न  चन्दनः   ||   
         - सुभाषित रत्नाकर (प्रसंग रत्नावली )

भावार्थ -    अपने आन्तरिक बल से विहीन प्राणियों  को यदि
यदि बाहर से भी सहायता दी जाय तो भी उस का  क्या लाभ ?
देखो न  !  मलय प्रदेश में चन्दन के वृक्षों के साथ स्थित बांस
के पेड बांस के ही रहते हैं, चन्दन नहीं बन जाते हैं |

(प्रस्तुत सुभाषित 'मूर्खवर्णनम्' शीर्षक से संकलित है | इस का
तात्पर्य यह  है कि यदि कोई मूर्ख व्यक्ति आन्तरिक बल और
बुद्धि से रहित  हो उसे बाहर से अतिरिक्त सहायता देने और
विद्वानो के संसर्ग में रखने से भी वह मूर्ख ही रहेगा | इसी भावना
को  चन्दन के वन में उगे हुए बांस के पेडों की सुन्दर उपमा  के
द्वारा व्यक्त किया गया है | )

Antahsaaraviheenasya  sahaayah kim karishyati.
Malayepi sthito venurvenureva  na chandanah.

Antahsaaraviheenasya =  Antah + saara +viheenasya.
Antah = inner.      Saara = strength.      Viheenasya =
bereft of, without.    Sahaayah = help.   Kim =what
Karishyati = does.            Malayepi = malaye + api.
Malaye = a mountaneous region in South India famous
for its Sandawood forests.   Sthito = existing.
Venurvenureva = venuh +venu + iva.  Venuh = bamboo
plant. Iva =like the.   Na=not.   Chandanah=sandalwood.

i.e.      Of what use is the outward help to those persons
who are bereft of any inner strength and intellect ?
Just see !  bamboo plants growing in Malaya region in a
forest of Sandalwood trees remain bamboo plants and do
not become sandalwood.

(This Subhashita is classified as 'description of foolish persons'
By the use of a simile of bamboo plants growing along with the
Sandalwood, the author has emphasised that in spite of being
in the company of learned persons fools can not become learned
persons due to lack of inner strength and intellect in them.)

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