Monday, 12 February 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita .


निष्णातोSपि  च  वेदान्ते साधुत्वं  नैति  दुर्जनः  |
चिरमग्नो  जलनिधौ  मैनाक इव  मार्दवम्         ||
               - सुभाषित रत्नाकर (भामिनीविलासः )

भावार्थ -   वेद तथा उपनिषद आदि में पारङ्गत होने पर भी
दुर्जनों के स्वभाव में दया की भावना उसी प्रकार नहीं होती है
जिस तरह  समुद्र में चिरकाल से डूबे हुए  होने पर भी मैनाक
पर्वत में कभी मृदुता नहीं होती है (वह कठोर ही बना रहता है )|

(यह  सुभाषित भी "दुर्जन निन्दा" शीर्षक से प्रकाशित है | इस
में एक उपमा के माध्यम से यह प्रतिपादित किया गया  है कि
अच्छी संगति होने पर भी दुष्ट व्यक्तियों  के स्वभाव में कोई
अच्छा परिवर्तन नहीं होता है | )

Nishnaatopi  cha  vedaante  saadhutvam  naiti durjanah.
Chiramagno  jalanidhau  mainaaka  iva  maardavam.

Nishnaatopi = nishnaato + api.    Nishnaato = well versed.
learned.   Api = even.         Vedaante =vedaas and other
scriptures like Upanishadas etc.   Saadhutvam = kindness
and good nature.   Naiti =na + aiti.    na = not.   aiti = go
towards, become.  Durjanah = a wicked person. scoundrel.
Chira =for  a long time.   Magno = immersed.   Jalanidhau=
the Ocean.   Mainaak= the name of a mountain,   Iva =like.
Maardavam = softness, pliancy.

i.e.    Wicked persons, even if they may be well versed and
in Vedas and other scriptures are devoid of kindness, just
like the Mainaak mountain, which, although immersed  in
the Ocean since ages, is still not pliant (i,e, hard and rigid).

(This Subhashita is also classified as 'censuring the wicked
persons' . Through a simile the author has emphasised that
in spite of good company and education, there is no change
for betterment  in the nature of wicked persons. )

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