Sunday, 4 February 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


गृहे  जानुचरः  केल्यां  मुग्धस्मितमुखाSम्बुजः |
पुत्रः  पुण्यमतामेव  पात्री  भवति  नेत्रयोः           ||
                          - सुभाषित रत्नाकर (कल्पतरु)

भावार्थ -    कमल के समान सुन्दर, मुस्कान युक्त और घुटनों के बल पर
चलने वाले अपनी सन्तान  की  बाललीला को अपने ही घर में स्वयं अपने
नेत्रों से देखने का सुख सज्जन और पुण्यवान व्यक्तियों को ही प्राप्त होता है |

(संस्कृत भाषा में 'पुत्र ' शब्द का अर्थ एक या दो वर्ष की आयु के बालक या
बालिका दोनों के लिये प्रयुक्त किया जाता है , यद्यपि सामान्यतः बालक के 
लिये ही प्रयुक्त होता है |)

 Gruhe jaanucharah kelyaam mugdha-smita-mukhaambujah.
Putrah Punyamataameva  paatree bhavati  netrayoh.

Gruhe = home.    Jaanucharah =  a child crawling on the knees.
Kelyaam =playing.    Mugdha =lovely, simple minded.   Smit=
smiling.    Mukhaambujah = mukha + ambujah.    Mukha =face.
Ambujah = (like a) lotus flower.  Putrah= a child  (both Son or
a daughter )                  Punyamataameva = punyamataam +eva. 
Punyamataam =virtuous and noble men.   Eva =really.  Paatree = 
recipient. Bhavati = become.     Netrayoh = eyes.

i.e.  The joy of observing a playful. smiling and beautiful child
like a blooming lotus  flower and crawling  on his knees, is enjoyed
only by the blessed and virtuous persons.

(In Sanskrit the word "Putra'  also denotes both a boy or a girl aged
upto 1 or 2 years' age, whereas in general usage it means a male
child.)



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