Thursday, 22 March 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita


विद्वत्तम च  नृपत्वं  च  नैव तुल्यं कदाचन  |
स्वदेशे  पूज्यते राजा  विद्वान्सर्व्रत्र पूज्यते   ||
                   -  सुभाषित रत्नाकर ( हितोपदेश)

भावार्थ -    विद्वत्ता  तथा  नृपत्व (राजसी ठाठबाठ)  की आपस में
तुलना कभी नहीं हो सकती है , क्यों कि एक राजा तो केवल अपने ही
देश में पूज्य  होता है जब कि एक विद्वान व्यक्ति सर्वत्र पूज्य  होता है |

(यह सुभाषित 'विद्वत्प्रशंसा  ' शीर्षक के अन्तर्गत संकलित है |  इसका
तात्पर्य यह है  कि  नृपत्व की तुलना में विद्वत्ता ही श्रेष्ठ होती है  |)

Vidvattam cha nrupatvam  cha  naiva tulyam kadaachana.
Svdeshe poojyate Raajaa  vidvaan-sarvatra poojyate.

Vidvattam =  Scholarship.   cha = and.   Nrupatvam = Royalti.
Naiva = no, never.   Tulyam = comparable.   Kadachana = at
any time.    Svadeshe = in one's own country.    Poojyate =
honoured, revered.   Raaja = a king, a ruler.   Vidvaan =a scholar,
a learned person.   Sarvatra = every where,

i.e.     Scholarship and  royalty are never comparable , because
a king is honoured  within his own country, whereas a scholar
is revered every where .

( This Subhashita is categorised   as "Vidvatprashmsaa"  in praise
of Scholarship. The underlying idea is that scholarship is superior
than the royalty. )

2 comments:

  1. Sir I was not getting the meaning of this subhashita I anywhere but I found your page and it really helped me a lot .thumbs up with you sir

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