Friday, 23 March 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.

विकृतिं नैव गच्छन्ति सङ्गदोषेण साधवः  |
आवेष्टितं  महासर्पैश्चन्दनं न विषायते      ||
               - सुभाषित रत्नाकर ( शार्ङ्गधर )

भावार्थ -   बुरे  व्यक्तियों के साथ रहने पर भी  साधुओं (सहृदय और
सज्जन व्यक्तियों) के स्वभाव में कोई विकृति (गिरावट) उसी प्रकार
नहीं होती  है  जैसे कि  चन्दन के वृक्ष में जहरीले सर्प लिपटे रहने पर
भी चन्दन का  वृक्ष विषैलानहीं हो जाता है |

इसी भावना को कविवर  रहीम ने भी इस दोहे मे व्यक्त किया है =
            जो रहीम उत्तम प्रकृति का करि सकत  कुसंग  |
             चन्दन विष व्यापत नही लपटे रहत भुजंग ||)

Vikritim naiva  gacchanti sangadoshena saadhavah.
Aavishthitam mahaasarpaishchandanam na vishaayate.

Vikritim = negative change.   Naiva =never.   Gacchanti=
undergo.     Saadhavah = noble and virtuous persons.
Aveshtitam = surrounded by.    Mahaasarpaishchandanam=
Mahasarpaih +chandanam.    Mahasarpaih = large snakes.
Chandanam = the sandalwood tree.   Na =  not,  vishaayate=
becomes poisonous .

i.e.    In spite of remaining in the company of bad people,
noble and righteous persons do not  undergo  any negative
change in their attitude towards  others , just like the sandal
wood tree always being surrounded by  large and poisonous
snakes, never becomes poisonous.




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