Friday, 16 March 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


गर्जितबधिरीकृतककुभा  किमनेन कृतं हि  घनेन  |
इयती  चातकचञ्चुपुटी  सापि  भृता  नैव  जलेन   ||
                           - सुभाषित रत्नाकर (शार्ङ्गधर )

भावार्थ -   इन बादलों ने  सारे प्रदेश में भयंकर ध्वनि से गरज गरज कर
लोगों को तो बहरा कर दिया है  परन्तु फिर भी चातक पक्षी  की खुली हुई
चोंच के अन्दर थोडा सा जल डाल कर उसे क्यों नहीं भर दिया है ?

(उपर्युक्त सुभाषित भी एक 'चातकान्योक्ति' है |  इस में भी लाक्षणिक रूप
से एक चातक पक्षी के माध्यम  से यह तथ्य प्रतिपादित किया  गया है कि
शासक वर्ग को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि राज्य द्वारा दी जा रही
सहायता समाज के निम्नतम  और शोषित समाज तक पहुंचनी चाहिये और
मात्र प्रचार कर उसकी इतिश्री नहीं होनी चाहिये | यहां बादल शासकों का और
चातक  शोषित वर्ग का प्रतीक है | )

Garjit-badhireekruta-kakubhaa  kimanena krutam hi ghanena.
Iyatee chaatak-chanchu-putee   saapi  bhrutaa  naiva  jalena.a

Garjita = roaring.    Badhireekruta = made deaf.   Kakubhaa =
various regions of the Earth.    Kimanena = kim + anena.
Kim =   why?     Anena = this.   Krutam = done.   Hi = surely.
Ghanena = by the clouds.    Iyatee = so little.   Chaatak = name
of a bird.     Chanchu = beak.    Putee = cavity created by the
opening of a beak.   Saapi = sa+ api.    Sa - that,     Api - even.
Bhrutaa = filled       Naiva = not, no.     Jalena = with water.

i.e.     These clouds have made people in this region deaf  by
their roaring sound, but why have they not put even a few drops
of water in the cavity of the beak of the thirsty Chatak bird ?

(This Subhashita is also a 'Chatakaanyokti (allegory) . By the use
of a simile of clouds and the Chatak bird, representing the  Rulers
of a country and its poor people respectively , the author has
emphasised that it is the duty of the Rulers to distribute the wealth
equitably and without any pomp among the citizens and should also
ensure that poor people are not neglected and deprived. )

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