अन्तःसारविहीनस्य सहायः किं करिष्यति |
मलयेSपि स्थितो वेणुर्वेणुरेव न चन्दनः ||
- सुभाषित रत्नाकर (प्रसंग रत्नावली )
भावार्थ - जिस व्यक्ति में स्वयं अपनी आन्तरिक शक्ति या
सामर्थ्य न हो उस की सहायता करने से कुछ भी लाभ नहीं होता
है | उदाहरणार्थ मलय प्रदेश में चन्दन वृक्ष के वनों में उगे हुए बांस
के वृक्ष बांस के ही रहते हैं और चन्दन नहीं हो जाते हैं |
(प्रस्तुत सुभाषित 'मूर्ख वर्णनम्' शीर्षक के अन्तर्गत संकलित है |
इसका तात्पर्य यह है कि विद्वान व्यक्तियों के निकट संपर्क में
रहने पर भी मूर्ख व्यक्ति मूर्ख ही रहता है क्यों कि उसमें आन्तरिक
शक्ति (बुद्धि) का अभाव होता है |
Antahsaaraviheenasya sahaayah kim karishyati.
Malayepi sthito venurvenureva na chandanah.
Antahsaara = inherent qualities. Viheenasya =
a person not having any thing. Sahaayah = a helper.
Kim = what ? Karishyati = will do. Malayepi =
Malaye + api. Malaye = reference to Malaya region
of south India known for its sandalwood forests.
Api = even. Sthito = existing. Venurvenureva =
Venuh + venuh +eva. Venuh = bamboo. Ive = like
the. Na = not. Chandanah = sandalwood.
i.e. It is of no use to help a person who is devoid of inner
strength and capability, just like the bamboo trees growing
in the Malaya region in a forest of Sandalwood trees remain
as bamboo trees and do not become sandal wood trees.
(This Subhashita is classified as ' the traits of a foolish person' .
Through the simile of Sandalwood trees grown in Malaya region,
the author has emphasised the fact that even in the company of
learned persons, foolish persons still remain foolish due to lack
of intelligence in them.)
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