शूरं त्यजामि वैधव्यादुदारं लज्जया पुनः |
सापत्न्यात्पण्डितमपि तस्मात्कृपणमाश्रये ||
- सुभाषित रत्नाकर (स्फुट)
भावार्थ - धन संपत्ति की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी का कहना है कि
मैं विधवा होने के डर से शूरवीर व्यक्तियों का वरण नहीं करती हूं ,
और उदार हृदय व्यक्तियों के साथ रहने मे मुझे लज्जा आती है (कि
वे कहीं मुझे किसे अन्य व्यक्ति को न दे दें ) तथा एक विवाहित
विद्वान के साथ भी रहना नहीं चाहती हूं | इसी लिये मैं एक कृपण
(कंजूस) व्यक्ति के आश्रय में ही रहती हूं |
(प्रस्तुत सुभाषित 'लक्ष्मीस्वभाव ' शीर्षक के अन्तर्गत संकलित है|
लाक्षणिक रूप से इसका तात्पर्य यह है कि शूर,दानवीर तथा विद्वान
व्यक्ति धनवान नहीं होते है और कृपण व्यक्ति ही धनवान होते है
क्यों कि उनकी प्रवृत्ति ही धनसंचय करने की होती है |)
Shooram tyajaami vaidhavyaadudaaram lajjayaa punah.
Saapatnyaatpanditamapi tasmaatkrupanamaashryaye.
Shooram = a warrior. Tyajaami = I abandon. Vaidhvyaat =
for the fear of becoming a widow. Udaaram = liberal, noble.
Lajjayaa = due to shyness or embarrassment. Punah = again.
Saapatnyaatpanditmapi = saapatnyaat + panditam + api.
Saapatnyaat = along with a wife. Panditam = a scholar.
Api = even. Tasmaatkrupanamaashryaye = tasmaat +krupanam
+ aashryaye. Tasmat = therefore. Krupana = a miserly person.
Aashraye = shelter.
i.e. Lakshmi, the Goddess of riches says that she does not like
to stay with a warrior due to the fear of becoming a widow, and
with a liberal person to avoid the embarrassment of being passed
on to others . She also does not like a scholar already having a
wife, and therefore, likes to live with a miserly person.
(This Subhashita has been classified under the category "The nature
of Lakshmi,the Goddess of riches".The underlying idea behind this
Subhashita is that brave, liberal and scholarly persons are seldom
rich and only misers store their wealth. )
No comments:
Post a Comment