Monday, 9 April 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


गुणैरनेकैर्युक्तोपि  दुष्टस्यैकस्य  योगतः  |
वर्ज्यएव  पुमान्भूयाद्भुन्जंगस्येव चन्दनः ||
                      - सुभाषित रत्नाकर ( स्फुट )

भावार्थ -     एक दुष्ट स्वभाव का व्यक्ति चाहे अनेक गुणों से
युक्त भी क्यों न हो  उसकी दुष्टता से बचने का एक ही उपाय
है कि लोगों को उसके संपर्क से वैसे ही अप्रभावित रहना चाहिये
जिस प्रकार चन्दन का वृक्ष उसके ऊपर सर्प लिपटे होने पर भी
अप्रभावित रहता है |

(इसी भावना को कविवर रहीम  ने निम्नलिखित दोहे में बडी ही
सुन्दरता से व्यक्त किया है :-
            जो रहीम  उत्तम प्रकृति , का करि सकत कुसंग |
             चन्दन विष व्यापत नहीं , लिपटे रहत  भुजंग   ||

Gunairanekairayuktopi  dushtasyaikasya yogatah.
Varjyaeva  pumaanbhooyaadbhujamgasyeva  chandanah.

Gunaih+ anekaih+ yuktopi.    Gunaih = virtues.   Anekaih=
many.   Yuktopi = endowed with.    Dushtah+ ekasya.
Dushtah = a wicked and mean person.   Ekasya = one only.
Yogatah = remedy.  Vaarjyaeva = to be shunned or avoided.
Pumaan+bhooyaat =bhujangasya+ iva.   Pumaan = a man.
Bhooyaat = wish .   Bhujangasya = a snake's .   Iva =like a
Chandanah = sandalwood tree.

i.e.    A wicked and mean person may be having many other
virtues, but the one and only remedy to avoid the ill-effects
of associating with him is to remain detached from him , just
like the sandal wood tree, which ,although being infested by
snakes,  remains unaffected by their poison

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