लालनाद्बहवो दोषास्ताडने बहवो गुणाः |
तस्मात्पुत्रं च शिष्यं च ताडयन्न तु लालयेत् ||
- चाणक्य नीति (२/१५ )
भावार्थ - लालन ( प्रत्येक इच्छा पूरी कर देना) में अनेक दोष
होते हैं तथा ताडन ( अनुशासन में रखने के लिये दण्ड देना ) में
अनेक गुण होते हैं | अतः एक पिता को अपनी संतान का तथा
एक गुरु द्वारा अपने शिष्यों को अनुशासित रखने के लिये ताडन
विधि अपनानी चाहिये न कि लालन विधि |
(एक अन्य सुभाषित में भी इस भावना को इस प्रकार व्यक्त किया
गया है - ' लालयेत्पञ्चवर्षाणि दश वर्षाणि ताडयेत् |
प्राप्ये तु षोडशे वर्षे पुत्रं मित्रवदाचरेत || अर्थात एक
बालक का लालन पांच वर्ष की आयु तक करना चाहिये तथा अगले १०
वर्षों तक ताडन करना चाहिये | तथा बालक की आयु के १६वे वर्ष से
उसके साथ मित्रवत् व्यवहार करना चाहिये | )
Laalanaadbahavo doshaastaadane bahavo gunaah.
Tsmaatputram cha shishyam cha taadayanna tu laalayet.
Laalanaat + bahavo. Laalanaat = in indulgence (yielding to
the wishes, pampering, Bahavo= many. Doshaah + taadane.
Doshaah = defects. Taadane =chastising, imposing discipline.
Gunaah = merits, advantages Tasmaat = therefore. Putram =
children, Shishyam = pupil, disciple. Cha = and. Taadayet =
chastise. Na = not. Tu =but. Laalayet = indulge, pamper.
i.e. There are many defects in indulgence and so also many
advantages and merits in chastising and imposing discipline.
Therefore , a father should up bring his children and a Teacher
his pupils by chastising them and not by pampering them.
(In another Subhashita it is said that a father should pamper his
children upto the age of 5 years and thereafter for next 10 years
he should enforce strict discipline. But from the 16th year onwards
he should treat his children like a friend.)
No comments:
Post a Comment