Sunday, 20 May 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


लालनाद्बहवो  दोषास्ताडने बहवो  गुणाः |
तस्मात्पुत्रं  च शिष्यं  च ताडयन्न  तु लालयेत्  ||
                                   - चाणक्य नीति (२/१५ )

भावार्थ -   लालन ( प्रत्येक इच्छा पूरी कर देना) में अनेक  दोष
होते हैं तथा ताडन ( अनुशासन में रखने के लिये दण्ड देना ) में
अनेक गुण होते हैं |  अतः  एक पिता को अपनी संतान का  तथा
एक गुरु द्वारा  अपने शिष्यों को अनुशासित रखने के लिये ताडन
विधि अपनानी चाहिये न कि लालन विधि |

(एक अन्य सुभाषित में भी इस भावना को इस प्रकार व्यक्त किया
गया है -  ' लालयेत्पञ्चवर्षाणि  दश वर्षाणि ताडयेत्  |
                 प्राप्ये तु षोडशे  वर्षे पुत्रं मित्रवदाचरेत  ||   अर्थात एक
बालक का लालन पांच वर्ष की आयु तक करना चाहिये तथा अगले १०
वर्षों तक ताडन करना चाहिये |  तथा बालक की आयु के १६वे वर्ष से
उसके साथ मित्रवत्  व्यवहार करना चाहिये  |  )

Laalanaadbahavo doshaastaadane  bahavo gunaah.
Tsmaatputram cha shishyam  cha  taadayanna tu laalayet.

Laalanaat + bahavo.   Laalanaat = in indulgence (yielding to
the wishes, pampering,   Bahavo= many.  Doshaah + taadane. 
Doshaah = defects.   Taadane =chastising, imposing discipline. 
Gunaah = merits, advantages   Tasmaat = therefore.   Putram =
children,  Shishyam = pupil, disciple.  Cha = and.  Taadayet =
chastise.    Na = not.   Tu =but.    Laalayet = indulge, pamper.

i.e.   There are many defects in indulgence and so also many
advantages and merits in chastising and imposing discipline.
Therefore , a father should up bring his children and a Teacher
his pupils by  chastising them and not by pampering them.

(In another Subhashita it is said that a father should pamper his
children upto  the age of 5 years and thereafter for next 10 years
he should enforce strict discipline. But from the 16th year onwards
he should treat his children like a friend.)




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