Tuesday, 29 May 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


मूर्खस्तु  प्रहर्तव्यः  प्रत्यक्षो  द्विपदः  पशुः      |
भिद्यते  वाक्य-शल्येन  अदृशं  कण्टकं  यथा  ||
                                      - चाणक्य नीति (३/९
भावार्थ -   एक  मूर्ख व्यक्ति साक्षात् एक दो  पावों वाले एक पशु
के समान होता है और वह  बलप्रयोग के द्वारा  ही  वश में किया
जा सकता है और उसकी तीर के समान  अनर्गल बातों उसी  प्रकार
चुभती हैं जिस प्रकार  पांव में चुभा हुआ पर न दिखाई देना वाला
एक कांटा |

Moorkhastu  prahartavyah  pratyakso dvipadah  Pashuh,
Bhidyate  vaakya-shalyena  adruasham  kantakam yathaa.

Moorkhh+ tu.    Moorkhah = an idiot.   Tu = and, but
Prahartavya = controlled by using force.  Pratyaksho =
evidently, explicitly.    Dvipadah = having two  feet
Pashuh = beast , an animal.   Bhidyate=pierces.   Vaakya-
Shalyena =by the arrow like words.  Adrusham=  invisible.
Kantakam = thorn .   Yathaa = for instance, just like a

i.e.  An idiot is evidently like a two legged beast who can be
controlled only by using force.  His irrelevant talk is piercing
like arrows and painful just like an invisible thorn embedded
in the foot.

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