तादृशी जायते बुद्धिर्व्यवसायोSपि तादृशः |
सहायास्तादृशा एव यादृशी भवितव्यता ||
- चाणक्य नीति (६/६)
भावार्थ - जो कुछ भी किसी व्यक्ति के भाग्य में होता
है उसी के अनुसार उसकी बुद्धि (मानसिकता) हो जाती
है तथा व्यवसाय भी तदनुसार हो जाता है और वैसे ही
सहायक (अच्छे या बुरे )भी उसे मिल जाते हैं |
(इस सुभाषित को तुलसीकृत रामायण में भी राजा प्रतापभानु
के प्रसंग में इस प्रकार प्रयुक्त किया गया है :-
' तुलसी जसि भवितव्यता तैसी मिलइ सहाइ |
आपुनु आवइ ताहि पहिं ताहि तहां लै जाइ || (दोहा १५९ -ख )
राजा द्वारा अपने शत्रु को एक तपस्वी साधु समझ कर उसके
ऊपर विश्वास करने के कारण उसका सारा कुल नष्ट हो गया
और राज्य भी छिन गया था | )
Taadrushee jaayate buddhirvyavasaayopi taadrushah.
Sahaayaastaadrushaa eva yadrushee bhavitavyataa.
Taadrushee = accordingly. Jaayate = becomes, happens.
Buddhih +vyavasaayo + api, Buddhih = intuition,
perception. Vyavasaayo = business. vocation. Api =
even. Sahaayaah + taadrushaa. Sahaayaah= helpers.
Eva = also. Yaadrushee = as is. Bhavitavyata = fate,
destiny.
i.e. Whatever is destined for a person, his perception ,
business or vocation takes shape accordingly and he also
gets (good or bad) advice or help from others .
(There is an episode of King Pratap Bhanu in Ramaayana
by Tulasidas corroborating the above Subhashita. The entire
family of the king was killed and his kingdom was conquered
only because he acted according to the advice of his enemy
in the disguise of a sage whom he met in a forest. )
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