अनभ्यासे विषं शास्त्रमजीर्णे भोजनं विषम् |
दरिद्रस्य विषं गोष्ठी वृद्धस्य तरुणी विषम् ||
- चाणक्य नीति (४/१५)
भावार्थ - यदि कोई विद्वान व्यक्ति उसके द्वारा अध्ययन किये हुए
शास्त्र का नियमित अभ्यास नहीं करता है तो वह शास्त्र उसके लिए विष
(जहर)के समान हो जाता है (उस के ऊपर विद्वान का अधिकार समाप्त
हो जाता है ), अजीर्ण (भोजन न पचना) के रोगी के लिये भोजन करना
विषपान करने के समान हो जाता है | एक दरिद्र व्यक्ति के लिये उसके
पारिवारिक और सामाजिक समारोह विष के समान हो जाते हैं (क्योंकि
वह धनाभाव के कारण उनमें सम्मिलित नहीं हो सकता है ) तथा एक वृद्ध
व्यक्ति के लिये एक युवती स्त्री का साहचर्य विष के समान हानिकारक है
(क्यों कि वह युवती की इच्छापूर्ति करने में असमर्थ होता है ) |
Anabhyaase visham shaastramajeerne bhojanam visham.
Daridrasya visham goshthee vruddhasya tarunee visham.
Anabhyaase = for want of regular practice of any skill.
Visham = poison. Shaastram + ajeernam. Shaastram=
any discipline of learning. Ajeernam= indigestion.
Bhojanam = eating food. Daridrasya = a poor person's
Goshthee = family connections. Vrudhasya = an aged
person's . Tarunee = a young woman.
i.e. If a learned person does not regularly pursue his discipline
of learning, it becomes like a poison for him ( he loses control
over it) and for a person suffering from indigestion a sumptuous
meal is like a poison for him. For a poor person social and family
functions are like poison (due to financial constraints), and for
an aged person, a young woman is like a poison (due to inability
to satisfy her needs).
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