Thursday, 19 July 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


न देवो विद्यते काष्टे  न पाषाणे न मृण्मये  |
भावे  हि विद्यते देवस्तस्माद्भावो हि कारणम्  ||
                               - चाणक्य नीति  (८/११)

भावार्थ -   देवता न  तो काष्ट (लकडी ) की न पत्थर की
और न मिट्टी की मूर्ति में रहते हैं |  यह तो भक्तों की भावना
है जिस से वे इन मूर्तियों में   देवता की उपस्थिति मान कर
उनको पूजते हैं |  अतः यह भावना ही पूजा करने का प्रमुख
कारण है |

(सनातन धर्म में  देव मूर्तियों को मन्दिर में स्थापित करने
से पूर्व उनमें देवताओं की प्राणप्रतिष्ठा की जाती है और उस
के बाद ही उन्हें पूजने का प्रावधान है |  घरों में भी पूजा के
समय भी देवताओं का आह्वान मिट्टी की मूर्तियों में किया
जाता है और पूजन के बाद उन्हें बिदाई भी 'गच्छ गच्छ सुर
श्रेष्ठ स्वस्थाने परमेश्वरः ' कह कर दी जाती है | इसी भावना
को इस सुभाषित में सुन्दर रूप में व्यक्त किया गया है |

Na devo vidyate kaashte na paashane na mrunmaye.
Bhaave hi vidyate devastasmaadbhaavo hi kaaranam.

Na = not.   Devo = Gods.    Vidyate = there exists.
kaashte = in the wood.    Pashaane =  in a stone.
Mrunmaye = clay.   Bhaave = mental attitude.    Hi +
surely,   Vidyate = exists.   Devah + tasmaat + bhaavo.
Devah = god.   Tasmaat = therefore,   Karanam =reason.

i.e.   Gods do not exist in the idols made of wood, stone or
clay. It is the mental attitude of the worshipper which gives
them the feeling that they are worshipping the Gods.
Therefore, this mental attitude is the main reason for their
worshiping the idols.

(In the Sanaatan Dharma  an idol is ceremonially installed
by invoking the concerned God and only thereafter the idols
are worshipped. This ritual is called 'Praana Pratishthaa.   Even
when in homes idols of clay are worshipped, there also the
Gods are invoked and after the pooja they are requested to go
back to their abode .   Thus it is the mental attitude that is most
important for worshipping the Gods which has been highlighted
in the above Subhashita.)




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