धनहीनो न हीनश्च धनिकः स सुनिश्चयः |
विद्यारत्नेन हीनो यः स हीनः सर्ववस्तुषु ||
- चाणक्य नीति (१०/१)
भावार्थ - यह संभव है कि एक धनहीन (गरीब्) व्यक्ति अन्य
विषयों में हीन न हो, परन्तु यह निश्चित है कि एक धनवान व्यक्ति
अन्य विषयों में अवश्य हीन होता है | जो व्यक्ति विद्या रूपी रत्न
से हीन होते हैं वे सभी विषयों में हीन होते हैं |
(लाक्षणिक रूप से इस सुभाषित में विद्या की महिमा का वर्णन किया
गया है और उसे एक मूल्यवान रत्न की उपमा दी गयी है
विषयों में हीन न हो, परन्तु यह निश्चित है कि एक धनवान व्यक्ति
अन्य विषयों में अवश्य हीन होता है | जो व्यक्ति विद्या रूपी रत्न
से हीन होते हैं वे सभी विषयों में हीन होते हैं |
(लाक्षणिक रूप से इस सुभाषित में विद्या की महिमा का वर्णन किया
गया है और उसे एक मूल्यवान रत्न की उपमा दी गयी है
Dhanaheeno na heenashcha dhanikah sa sunishchayah.
Vidyaartnena heeno yah sa heenah sarvavastushu.
Dhanaheena= poor. Na= not. Heenashcha = Heenah + cha
Heena = deficient . Cha = and Dhanik = a rich person.
Sa = he. Sunishchayah = certainly. Vidyaa = knowledge.
Ratnena = jewel's (used as a simile for Knowledge). Yah =
whosoever. Sarva = all. Vastushu = things.
i.e. A poor person may not be deficient in other matters, but
a rich person certainly is. However a person.who is deficient
in knowledge (precious like a jewel), becomes deficient in all
other matters.
(Through this Subhashita the importance of Knowledge as against
wealth has been highlighted by using the simile of jewels for it.)
Ratnena = jewel's (used as a simile for Knowledge). Yah =
whosoever. Sarva = all. Vastushu = things.
i.e. A poor person may not be deficient in other matters, but
a rich person certainly is. However a person.who is deficient
in knowledge (precious like a jewel), becomes deficient in all
other matters.
(Through this Subhashita the importance of Knowledge as against
wealth has been highlighted by using the simile of jewels for it.)
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