Monday, 20 August 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


कवयः किं  न  पश्यन्ति  किं  न  भक्षन्ति  वायसाः  |
मद्यपाः किं  न जल्पन्ति  किं  न  कुर्वन्ति  योषितः ||
                                              -चाणक्यनीति (१०/४)

भावार्थ -  ऐसी कौन सी बात है कि जिस का कविगण पूर्वानुमान
नहीं कर सकते हैं , ऐसा कौन सा पदार्थ है जिसे कव्वे भक्षण नहीं
कर सकते  हैं , मद्यप (शराबी)  क्या अनर्गल बातें नहीं कह सकते
हैं तथा विपरीत परिस्थिति में एक महिला  क्या नहीं कर  सकती है  ?

( प्रश्नवाचक रूप से इस सुभाषित में यह प्रतिपादित किया गया है
कि कवियों की कल्पना शक्ति और अन्तर्दृष्टि  बहुत प्रबल होती है r
और कहा भी गया है कि - 'जहां न  पहुंचे रवि वहां पहुंचे  कवि ' |
कव्वे को  'सर्वभक्षी' कहा जाता है और एक मद्यप मद के प्रभाव में
आ कर अपनी वाणी का संयम त्याग कर अनर्गल बातें करने लगता
है |  एक स्त्री अपनी संतान की रक्षा के लिये हर प्रकार का त्याग ,
यहां तक कि अपने  प्राणों की बाजी  लगाने के लिये भी तत्पर रहती
है |  तुलसीदास जी ने भी रामायण में कहा है -  'सत्य कहहिं कवि नारि
सुभाऊ | सब  विधि  अगहु  अगाध दुराऊ ||'  )

Kavayah  kim na pashyanti  kim na bhakshanti  vaayasaah.
Madyapaah  kim  na  jalpanti  kim  na  kurvanti  yoshitah;

Kavayah = poets.   Kim = what.    Na = not.    Pashyanti =
foresee,  notice.   Bhakshanti = devour, eat.     Vaayasaah  =
crows.    Madyapaah = drunkards, alcoholics.    Jalpanti =
prattle, loose talks.    Kurvanti = do.   Yoshitah = a woman.

i.e.    Is there any thing that poets can not notice or foresee,
any thing that the crows can not devour,  any loose talk that
drunkards can not say, and what  a woman can not do in an
emergency  ?

(In a figurative way the author wants to emphasize that poets
possess the special insight of foreseeing the future,  crows are
omnivorous birds, a drunkard has no control over his speech
when he is in an inebriated state, and a woman can go to any
extent to protect her children and family. )

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