कवयः किं न पश्यन्ति किं न भक्षन्ति वायसाः |
मद्यपाः किं न जल्पन्ति किं न कुर्वन्ति योषितः ||
-चाणक्यनीति (१०/४)
भावार्थ - ऐसी कौन सी बात है कि जिस का कविगण पूर्वानुमान
नहीं कर सकते हैं , ऐसा कौन सा पदार्थ है जिसे कव्वे भक्षण नहीं
कर सकते हैं , मद्यप (शराबी) क्या अनर्गल बातें नहीं कह सकते
हैं तथा विपरीत परिस्थिति में एक महिला क्या नहीं कर सकती है ?
( प्रश्नवाचक रूप से इस सुभाषित में यह प्रतिपादित किया गया है
कि कवियों की कल्पना शक्ति और अन्तर्दृष्टि बहुत प्रबल होती है r
और कहा भी गया है कि - 'जहां न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि ' |
कव्वे को 'सर्वभक्षी' कहा जाता है और एक मद्यप मद के प्रभाव में
आ कर अपनी वाणी का संयम त्याग कर अनर्गल बातें करने लगता
है | एक स्त्री अपनी संतान की रक्षा के लिये हर प्रकार का त्याग ,
यहां तक कि अपने प्राणों की बाजी लगाने के लिये भी तत्पर रहती
है | तुलसीदास जी ने भी रामायण में कहा है - 'सत्य कहहिं कवि नारि
सुभाऊ | सब विधि अगहु अगाध दुराऊ ||' )
Kavayah kim na pashyanti kim na bhakshanti vaayasaah.
Madyapaah kim na jalpanti kim na kurvanti yoshitah;
Kavayah = poets. Kim = what. Na = not. Pashyanti =
foresee, notice. Bhakshanti = devour, eat. Vaayasaah =
crows. Madyapaah = drunkards, alcoholics. Jalpanti =
prattle, loose talks. Kurvanti = do. Yoshitah = a woman.
i.e. Is there any thing that poets can not notice or foresee,
any thing that the crows can not devour, any loose talk that
drunkards can not say, and what a woman can not do in an
emergency ?
(In a figurative way the author wants to emphasize that poets
possess the special insight of foreseeing the future, crows are
omnivorous birds, a drunkard has no control over his speech
when he is in an inebriated state, and a woman can go to any
extent to protect her children and family. )
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