Saturday, 4 August 2018

आज का सुभाषित / Today's subhashita.

गुणाः  भूषयते  रूपं  शीलं  भूषयते  कुलम्   |
प्रासादशिखरस्थोSपि काकः किं  गरुडयते  ||
                            -  चाणक्य नीति (८/१५ )

भावार्थ -   किसी व्यक्ति के गुण उसके रूप (सौन्दर्य) की शोभा को
और भी बढा  देते हैं तथा  उसकी  सच्चरित्रता उसके कुल की ख्याति
में वृद्धि कर देती है |  उदाहरणार्थ क्या एक साधारण कव्वा किसी महल
के ऊंचे शिखर पर बैठे हुए गरुड की शोभा की समानता कर सकता है ?

कव्वे और  गरुड (चील या बाज ) में मुख्य अन्तर उनके शरीर सौष्ठव
तथा ऊंचाई में तेजी से उडने की क्षमता होती है |  केवल किसी ऊंचे स्थान
या पद पर बैठने से ही कोई व्यक्ति महान नहीं हो जाता है | उसमें वांछित
योग्यता का होना भी आवश्यक होता है |  यही इस सुभाषित का तात्पर्य है
जैसा कि एक अन्य सुभाषित में कहा गया है -  'गुणैरुत्तुङ्गतां याति
नोच्चैरासनसंस्थितः  |  प्रासाद्रशिखरारूढ:  काकः किं गरुडायते "  )

Gunaah  bhooshayate  roopam  sheelam  bhooshayate  kulam.
Praaasada-shikharastopi  kaakah  kim  garudaayate.

Gunaah = talent, virtues    Bhooshayate = decorate, beautify.
Roopam = appearance, figure.   Sheelam = character.  Kulam=
family, clan.    Praasaad+ shikharastho + api.       Praasaad =
a palace or a lofty building.    Shikharstho = perched on the top.
Api = even.   Kaaakah = a crow.   Kim =  can it ?    Garudaayate=
match the majesty of an eagle.

i.e.    Talent beautifies the personality of  a person , and his good
character the status of his family.  For instance , can an ordinary
crow match the majesty and grandeur of a King eagle perched on
the tower of a palace ?

(The main difference between a crow and an eagle is the big  size 
of the eagle and its capacity to fly high.  Simply occupying a high
post one does not become great unless he possesses the requisite
qualities.  This is the message conveyed by this Subhashita as also
another similar Subhashita with a changed first sentence  conveying
the above remark. )








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