गुणाः भूषयते रूपं शीलं भूषयते कुलम् |
प्रासादशिखरस्थोSपि काकः किं गरुडयते ||
- चाणक्य नीति (८/१५ )
भावार्थ - किसी व्यक्ति के गुण उसके रूप (सौन्दर्य) की शोभा को
और भी बढा देते हैं तथा उसकी सच्चरित्रता उसके कुल की ख्याति
में वृद्धि कर देती है | उदाहरणार्थ क्या एक साधारण कव्वा किसी महल
के ऊंचे शिखर पर बैठे हुए गरुड की शोभा की समानता कर सकता है ?
कव्वे और गरुड (चील या बाज ) में मुख्य अन्तर उनके शरीर सौष्ठव
तथा ऊंचाई में तेजी से उडने की क्षमता होती है | केवल किसी ऊंचे स्थान
या पद पर बैठने से ही कोई व्यक्ति महान नहीं हो जाता है | उसमें वांछित
योग्यता का होना भी आवश्यक होता है | यही इस सुभाषित का तात्पर्य है
जैसा कि एक अन्य सुभाषित में कहा गया है - 'गुणैरुत्तुङ्गतां याति
नोच्चैरासनसंस्थितः | प्रासाद्रशिखरारूढ: काकः किं गरुडायते " )
Gunaah bhooshayate roopam sheelam bhooshayate kulam.
Praaasada-shikharastopi kaakah kim garudaayate.
Gunaah = talent, virtues Bhooshayate = decorate, beautify.
Roopam = appearance, figure. Sheelam = character. Kulam=
family, clan. Praasaad+ shikharastho + api. Praasaad =
a palace or a lofty building. Shikharstho = perched on the top.
Api = even. Kaaakah = a crow. Kim = can it ? Garudaayate=
match the majesty of an eagle.
i.e. Talent beautifies the personality of a person , and his good
character the status of his family. For instance , can an ordinary
crow match the majesty and grandeur of a King eagle perched on
the tower of a palace ?
(The main difference between a crow and an eagle is the big size
of the eagle and its capacity to fly high. Simply occupying a high
post one does not become great unless he possesses the requisite
qualities. This is the message conveyed by this Subhashita as also
another similar Subhashita with a changed first sentence conveying
the above remark. )
प्रासादशिखरस्थोSपि काकः किं गरुडयते ||
- चाणक्य नीति (८/१५ )
भावार्थ - किसी व्यक्ति के गुण उसके रूप (सौन्दर्य) की शोभा को
और भी बढा देते हैं तथा उसकी सच्चरित्रता उसके कुल की ख्याति
में वृद्धि कर देती है | उदाहरणार्थ क्या एक साधारण कव्वा किसी महल
के ऊंचे शिखर पर बैठे हुए गरुड की शोभा की समानता कर सकता है ?
कव्वे और गरुड (चील या बाज ) में मुख्य अन्तर उनके शरीर सौष्ठव
तथा ऊंचाई में तेजी से उडने की क्षमता होती है | केवल किसी ऊंचे स्थान
या पद पर बैठने से ही कोई व्यक्ति महान नहीं हो जाता है | उसमें वांछित
योग्यता का होना भी आवश्यक होता है | यही इस सुभाषित का तात्पर्य है
जैसा कि एक अन्य सुभाषित में कहा गया है - 'गुणैरुत्तुङ्गतां याति
नोच्चैरासनसंस्थितः | प्रासाद्रशिखरारूढ: काकः किं गरुडायते " )
Gunaah bhooshayate roopam sheelam bhooshayate kulam.
Praaasada-shikharastopi kaakah kim garudaayate.
Gunaah = talent, virtues Bhooshayate = decorate, beautify.
Roopam = appearance, figure. Sheelam = character. Kulam=
family, clan. Praasaad+ shikharastho + api. Praasaad =
a palace or a lofty building. Shikharstho = perched on the top.
Api = even. Kaaakah = a crow. Kim = can it ? Garudaayate=
match the majesty of an eagle.
i.e. Talent beautifies the personality of a person , and his good
character the status of his family. For instance , can an ordinary
crow match the majesty and grandeur of a King eagle perched on
the tower of a palace ?
(The main difference between a crow and an eagle is the big size
of the eagle and its capacity to fly high. Simply occupying a high
post one does not become great unless he possesses the requisite
qualities. This is the message conveyed by this Subhashita as also
another similar Subhashita with a changed first sentence conveying
the above remark. )
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